जागरण के स्वर | Jagaran Ke Swar

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Jagaran Ke Swar by सिद्धेश्वर - Siddheshvar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सीखा ही नहीं विचलित होना भी कभी लक्ष्य से (1 तीर्थंकर का एक्का मनुस्सजाई उद्घोष भी रहा प सिद्धांत भी हो महान विभूति का विश्वजनीन ष ज्ञानवादी थे मानते थे अन्नाण शुष्क ज्ञान को आ | जागरण के स्वर / 25 कैवल्य प्राप्ति के बाद महावीर बोलने लगे | महावीर मे ज्ञान और क्रिया का समन्वय है छः कहते थे वे ज्ञान पुरुष पथ- भ्रष्ट न होते छ महावीर ने जगाया अनेकात अपरिग्रह पा महावीर थे सास्कृतिक क्रांति के सूत्रधार भी प्‌ महावीर ने कहा, कोरा ज्ञान भी सूखा ज्ञान है छा मौन रहे वे अहिसा को रमने हेतु आत्मा में छा




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