स्वाधीनता के सिद्धान्त | Swadhinata Ke Shiddhant

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Swadhinata Ke Shiddhant by टेरेन्स मैकस्विनी - Terens Maikasvini

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २३ ) दोगा यदि एक दिन भी लेटे रहना पे । ऐसी स्पिनिमें धुटनों- को हिलाने डुलानेसे कितना जाराम मालूम पडता है किन्तु इस चीर सैनिफकों यद् आाराम भी न मिला । उसके घुटनोंका मास सूख गया था और उसमें इतनो ताफत भी न थी कि वद्द अपने चदनके फपडोंका भार ही उठा सके । एक दिन नद्दी सत्तर दिन तक लगातार इस चीरने यद्द यातना सद्दी । इस फष्ट और यन्त्र णाफे साथ साथ अनशन घतकी तकलीफ थी। मुमसे कहा गया था कि कुछ दिन भूणे रहनेफे बाद फिर खानेकी इच्छा ही नहीं रहती । मैंने लार्ड मेयरसे इस विषयपर प्रश्न किया । उह्े बेहोश होनेफे दिनतक भोजन फरनेकी इच्छा थी । एक बार तो उन्द्ोंने कद्दा कि मैं एक प्याला चायके लिये इस भूषकी हालत- में एक द॒ज्ञार पाउएड भी दे देता । ज्यो ज्यों भोजन न मिल्नेसे खून फप्त द्वोता गया उनको स्ताय्यिक दुर्बेलताने घोर छिया। उनको हदुरोग द्वो गया, सिरमें सूई चुमनेके समान ददे होने लगा, आें अन्घी होने लगीं और कान यहरे होने लगे। उस समयफकी मानसिक व्यथाका घिचार फीजिये ज़ब वह अपनी पत्तों, बहन और भाइयोंको देखते थे 1इनफे उपध्यित रहनेसे उन्हें आराम भी था, किन्तु इनसे लग द्वोनेका दु श्र और यदद विचार कि मेरा दु ष देखकर इन छोगोंके हृद्यमें क्या भाव उठते होंगे उन्हें घोर कष्ट दे रह्दा था। इसपर भी वह न कभी गिडगणिड़ाये और न माममात्रको डगमगाये। उन्होंने ईश्वरकों धन्यवाद दिया कि उसने उन्हें चद्द मौत दी है जो संसारमें फम लछोगोंके साग्य-




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