हिंदी शब्दनिर्णय मीमांसा | Hindi Shabd Meemansa

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Hindi Shabd Meemansa by किशोरीदास वाजपेयी - Kishoridas Vajpayee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रयम ध्प्याय 9 ठाव्द स्व॒रान्त है, एक भी व्यजनान्त नहीं । सस्उत्त के भी जो शब्द तद्धव रूप में ग्रहण किए गए हैं, सब स्वरान्त, एक भी व्यजनान्त नहीं। सभी तरह के गद्दों में यही नीति है । 'पंचादतत' का रुप 'पचास' है श्र “चत्वास्णित्‌ का 'चालीस' ।. 'पप का ('सस' कर के) “छह रुप है, जिसे उच्चारण साम्य के कारण 'छ ' प्रामादिक रुप लोगो ने दे दिया है। इस पर श्रागें हम ययास्थान विचार करे गे । यानो, घददों के भ्रन्त में विसर्ग रहने के कारण बहुत सन्नट थी ! सन्धि-चवफर मार लेता है। इसी तरह व्यजनान्त धन्दो में झन्तर है। इन दोनों ज्ञप्तटों को हिन्दी ने टूर रखा, जैसा कि प्राऊृत-प्रपभश में भी है ।. प्राकृत में तो पुत्र को “'पुत्तो' कर दिया गया , पर हिन्दी में सीधा 'पूत' ।. पुर भी चलता ही है तद्भव धच्दों में ही नही, तदूप (तत्सम) णब्द सस्टत्त के जो हिन्दी में झ्ाते हे, वे भी हिन्दी की प्रकृति का पूरा ध्यान रस कर ही उपर मुंह करतें है । ये अ्रपनें अन्त के व्यजन त्तया चिसर्ग वहीं छोड चातें है ।. हिन्दी ने एक पद्धति अपना कि सस्कृत के प्रातिपदिक न से कर 'पद' ग्रहण किए जाएं ।. पद-वन्दना का उत्तम भाय । यह उस पिएं कि सस्दत्त के प्रातिपदिकों हो ही यहाँ प्रानिपदिव के रूप में ग्रहण नरना एफ घजट थी । हिन्दी पकारान्न प्रातिपदिक नहीं चाहती | घटकारान्त की यहाँ कोई स्थिति नहीं है । परन्तु सस्ते में 'पितृ' 'सानू' “लात घादि पहारान्त प्रासिपदिक हे । उन्हीं में विभपितय लगा बेर पद बनाए जाते हे। परन्तु हिल्‍्दी झहारास्त




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