गल्प - गुच्छ भाग - 4 | Gulp - Guchchh Bhag - 4

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Gulp - Guchchh Bhag - 4 by रवीन्द्रनाथ ठाकुर - Ravindranath Thakur

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

Add Infomation AboutRAVINDRANATH TAGORE

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ननन्‍्दकिशोर की कीर्चि लेसक जाति की प्रकृति के अनुसार नन्‍्दकिशर कुछ भोपू कर मुँहचेर प्रादमी थे । फिसी फे सामने जाहिर होने मे वे सटपटा जाते थे। घर में बैठे बैठे कवम चलाने से उनकी नजर कमजोर और पीठ जरा कुपटी दा गईथी । ससारकी अभिज्ञवा भी वहुत्त थोड़ी थी। दुनियादारी के बेँघे वोह सहज दी उन्तके मुँह से न निकलते थे । इसी कारण धर की गठो के बाहर थे अपने का सुरक्षित नहीं समझते थे। लेग भी उन्हें एक विचित्र ढग का झ्रादमी समभते थे ! इस बारे मे लोगों का देपष भी नहीं दिया जा सकता। मान छीजिए, प्रथम परिचय में किसी भले झादमी ने अपनी प्रस- न्ञवा प्रकट करते हुए कद्दा कि “आपसे मिलकर झुमे बडी प्रसन्नता हुई” ते नन्‍्दकिशोर कुछ न फदकर अपनी दाहनी हथेली के विशेष रूप से ध्यान देकर देखते लगे । उनके इस भाव का श्र्थ यद्दी लगाया जा सकता है कि श्रापकी प्रसन्नता हे।ना झुछ असस्भव नहीं, किन्तु मैं इसी सोच में पडा हैं कि मैं ऐसी भ्ृठी बाव किस तरद कहूँ कि श्रापको देखने से सुमे भी बडा झानन्द हुआ । इसी वरद्द मान लो, किसी लसपती ने नन्‍्दकिशोर की दावत की । भोजन के समय श्रपनी नम्नता दिखाते हुए वहच्द




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now