कसायपाहुडका | Kashaya Pahuda Sutta

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Kashaya Pahuda Sutta by गणधराचार्य वात्सल्य - Gandharachaarya Vatsalya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मंगलायरणं , जयह घवलंगतेएणावूरियतयलभुवणभवणगणो | केवलणाणसरीरो अणंजणो णामओ चंदो ॥ १ ॥ तित्थयरा चउपीस वि केवलुणाणेण दिद्वसव्यद्ठा । पसियंतु तिवसरूता तिहुबंणसिरसेहरा मज्ज ॥| २ ॥ सो जयह जर्स क्रेवलणाणुजलदप्पणस्मि लोयालोय॑। पुलपदिर्वियं दीसह वियसियसयवत्तगव्भगउरों वीरो ॥ ३ ॥ अंगंगवज्ज्ञणिम्भी अगाइमज्क॑तणिम्पलंगाए । सुयदेवयअंबाए णमो सया चखुमइयाएं | ४ ॥ णप्रह शुणरयणभरिय सुअणाणामियजलोहसहिरमपार । गणहरदेवमिहोपहिमणेयणयभंगर्ंगितुंगतरंगं ॥ ५ ॥ जेणिह कसायपाहुडमणेयणयम्ुज्ञल॑ अग॑त्त्थ॑ । गाहाहि विवरिय त॑ गुणहरभडारयं वंदे ॥ ६ ॥ गुणहरवयणविणिग्गयगाहाणत्थोवहारिओ सब्बो | जेणजमंखुणा सो सणागदृत्थी वर देझ | ७ ॥ जो अज्ञम॑सुसीसो अंतेवासी वि णामहत्थिरस । सो वित्तिसुत्तकत्ता जइच्सहो मे वर॑ देख ॥ ८ ॥ पणमह जिणवरवसहं गणहरवसहं तहेष गुणहरवसहं । दुसहपरीसहवसह जहवसहं धम्मसुत्तपादरवसहं ॥॥ ९ ॥




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