श्री गोम्मट प्रश्नोत्तर चिंतामणि | Shri Gommat Prashnottar Chintamani

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Shri Gommat Prashnottar Chintamani by गणधराचार्य वात्सल्य - Gandharachaarya Vatsalya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चाहिये और ज्ञान रूपी श्रमृत का भ्रास्वादन करना चाहिये । यही सनुष्य भव का सार है । इस हुंडावसपिणशी पंचमकाल में हमें शुक्ल ध्यान की प्राप्ति नही हो सकती है, मात्र धर्म ध्यान की ही सिद्धि के लिये जिनागमों का पठन-पाठन, स्वाध्याय आदि करना चाहिये । ये ही हमारे पास सात्र उपाय है इसी उपाय से हम शाति का अनुभव कर सकते है और कोई दसरा साधन नही, स्वाध्याय से जितना मन एकाग्र हो सकता है उतना दूसरे अन्य साधनों से नही, इसी को ध्यान मेँ रखते हुए हमने इस गोम्मट प्रष्नोत्तर चिन्तामणि ग्रन्थ का प्रष्न उत्तर रूप मे संग्रह्‌ किया है। भगवान गोम्मटेष्वर का सहस्त्राल्दि महामस्तकाभिषेक महोत्सव के समय हमारी भावना हुई कि गोम्मटेश्वर की यादगारीमे रचना कायं होना चाहिये, नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने तो सिद्धान्त ग्रथों का मथन करके सार रूप गोम्मट सार जीव काण्ड, कमं काण्ड की रचना की, लेकिन हमने सोचा हमारी तो इतनी बुद्धि नही कि स्वतत्र कोई ग्रथ की रचना करे, करई दिनों तक विचारो में ही रहे, आखिर निर्णय किया कि प्रश्न उत्तर रूप में कुछ सैद्धान्तिक विषयों का वर्णोत किया जाय । अक्षय तृतिया की शुभबेला मे मगलाचररण रूप ग्रथ का प्रारम्भ किया गया और लग गये पूर्ण पुरुषार्थ मे । एक वर्ष मे ग्रथ की पूति का समय भी आ गया, इस ग्रन्थ का नाम गोम्मट प्रश्नोत्तर चिन्तामणि रखा, यह्‌ ग्रन्थ सग्रह रूप है। इसमे मेने श्रपनी ओर से कुछ भी नही लिखा, पूर्वाचार्यो के वचनानुसार प्रथ का सग्रह किया गया है । सो पूर्वाचाय्य ही इस ग्रथ के प्रमाण है, मेने तो अपने को धर्म ध्यान में लगाने के लिये ही कार्य किया है, ग्रथ मे करणानु योग, द्रव्यानुयोग आदि सभी प्रकार की चर्चाएँ सम्न हित की गई है और आधार लिया गया है जिनागम का, मै समभता हू कि स्वाध्याय प्रमियो को इस एक ही प्रथ के स्वाध्याय करने से जिनागम का बहुत कुछ ज्ञान हो सकता है, इस ग्रंथ मे गुरस्थानानुसार आवक धर्म, मुनि धर्म, आत्म ध्यान, पीडस्थ, रूपातीत आदि ध्याव श्रौर उनके




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