अष्टादशस्मृति | Astadashsmriti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
510
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्वृत:१] - - आधुाटीकासमेताः। (१३ )
मृतसझननोंदूँ 5 सूतकादोी विधीयते॥
स्पशनाचमनाच्छुद्धिः सूतिकाश्रेन्न संस्पृशेत् ॥ ५७ ॥ *
मरेहुए वालकके जन्म होनेके पीछे जो अशौच होताहै उसमें आचमनके: हरा श्राह्मणोंके
अंगका स्पशे होतेही अशौच नहीं रहता; जो सूतिकाको स्पशे न कियाहो तो ॥ ९७
/ पंचमेहनि विज्ञेयं संस्प्श क्षत्रियस्प तु ॥ सप्तमेहनि वैश्यस्य विज्ञेये स्पर्श
बुणेः ॥ ९८ ॥ दशमे5हनि शूद्स्य कर्तव्यं स्पशन बुघे! ॥ मासेनै-
वात्मशद्धिः स्पात्सूतंके मृतके तथा ॥ ९९ ॥
क्षत्रियका पांच दिनमें, वैद्यका सात द्नमें, और शुद्रका दशदिनमें स्पश द्ोताहै, यह
बुद्धिमानोंकी जानना योग्य है ९८ ॥ ओर शूद्धके जन्म मरणमें एक मासतक अशौच
०
दोताह, वुद्धिमानोंको ऐसा जानना योग्य है॥ ९९ ॥
व्याधितस्य कद्यस्प ऋणग्रस्तस्य सर्वदा ॥ क्रियाहीनस्य मूर्खस्प स्लीनितस्य
विशेषतः ॥ १०० ॥ व्यप्तनासक्तचित्तस्य परॉधीन॑स्य नित्यशः ॥ श्राद्धत्याग
विहीनस्य भस्मांतं सतर्क भवेत् ॥ १०१ ॥
चिरकाछतक रोगी, कंजुस, जो सर्वदा ऋणी रहे,धर्मकार्येसे रहित, मूख, और जो ख्रीमें
अत्यन्त आसक्त हो ॥१००॥ और जिसका चित्त जुयेमें अत्यन्त छगा हो सबेदा पराधीनतामें
* रहनेवाला और भ्राद्धदान रहित मनुष्यके दग्धहांकर भस्म होगे तवतकही अशौच है ॥१०१॥
द्वे कच्छे परिवित्तेरतु कन्यायाः कृच्छूमेव च॥ कृच्छातिकृच्छूं मातुः स्यात्पितुई
सांतपन कृतम् ॥ १०२ ॥ कुब्जवामनषंठेषु गद्ददेषु जडेंषु च॥ जात्प॑धे बधिरे
मूके न दोष: परिवेदने ॥१०३॥ हीवे देशांतरस्थे च पतिते ब्रजितेपि वा ॥
योगशासत्राभियुक्ते च न दोषः परिवेदने ॥ १०४ ॥ पिता पितामहो यस्य
, अग्रजों वापि कस्यचित् ॥ अभिहोत्राधिकार्यरिति न दोषः परिवेदने ॥ १०५॥
पारिवित्ति(१) मनुष्य दो श्राजापत्यको करै तो बह शुद्ध होताहेै, और परिवेत्तासे विवाहिता”
. कन्याको एक प्राजापत्य करना होताहै;और कन्याकी माताकों ऋच्छू अतिकृच्छू करना योग्यहै,.
और कन्याके पिताको सान्तपन करना चाहिये॥ १०२ ॥ वडा भाई यदि ( जो ) कुबडा,
बौना, वावलछा, जन्मसे अंधा, जन्मसे वहरा, गुंगा, जनसमाजमें: निंदित, तोतछा, और
बेदके पढनेमें असम हो तौ छोटे भाईका प्रथम विवाह होजानेपर उसे दोष नहीं छंग्रेगा
॥ १०३॥ बडा भाई यदि नपुंसक, विदेशी, संन्यासी, पतित और योगशास्रमें रत हो
( योगाभ्यास करनेके कारण उसकी विवाहमें इच्छा नहीं हो ) तो उसे भी परिवेद्नमें
दोष नहीं होगा || १०७॥ जिस मनुष्यका पिता, पितासह, वढाभाई यह्द अभिद्दोश्रके
अधिकारी हुएहें, पीछे यह महुष्य (आ्रयश्वित्त करके ) अभ्निको अहण करे तो बडे साईसे
विवाह करनेमें दोषी नहीं होगा ॥ १०५॥ __ विवाह करलेमें दोषी नहीं होगा ॥ १०७॥_ ७.३. 3 ऑऑः
१ बड़े भाइका विवाह होजानेके पहले ही जो छोटेका विवाह होजाय तो उठ छोटे भाईको
“परिवेत्तारः और वडेको “परिवित्ति”? कहतेईं ।
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