अष्टादशस्मृति | Astadashsmriti

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Astadashsmriti by खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वृत:१] - - आधुाटीकासमेताः। (१३ ) मृतसझननोंदूँ 5 सूतकादोी विधीयते॥ स्पशनाचमनाच्छुद्धिः सूतिकाश्रेन्न संस्पृशेत्‌ ॥ ५७ ॥ * मरेहुए वालकके जन्म होनेके पीछे जो अशौच होताहै उसमें आचमनके: हरा श्राह्मणोंके अंगका स्पशे होतेही अशौच नहीं रहता; जो सूतिकाको स्पशे न कियाहो तो ॥ ९७ / पंचमेहनि विज्ञेयं संस्प्श क्षत्रियस्प तु ॥ सप्तमेहनि वैश्यस्य विज्ञेये स्पर्श बुणेः ॥ ९८ ॥ दशमे5हनि शूद्स्य कर्तव्यं स्पशन बुघे! ॥ मासेनै- वात्मशद्धिः स्पात्सूतंके मृतके तथा ॥ ९९ ॥ क्षत्रियका पांच दिनमें, वैद्यका सात द्नमें, और शुद्रका दशदिनमें स्पश द्ोताहै, यह बुद्धिमानोंकी जानना योग्य है ९८ ॥ ओर शूद्धके जन्म मरणमें एक मासतक अशौच ० दोताह, वुद्धिमानोंको ऐसा जानना योग्य है॥ ९९ ॥ व्याधितस्य कद्यस्प ऋणग्रस्तस्य सर्वदा ॥ क्रियाहीनस्य मूर्खस्प स्लीनितस्य विशेषतः ॥ १०० ॥ व्यप्तनासक्तचित्तस्य परॉधीन॑स्य नित्यशः ॥ श्राद्धत्याग विहीनस्य भस्मांतं सतर्क भवेत्‌ ॥ १०१ ॥ चिरकाछतक रोगी, कंजुस, जो सर्वदा ऋणी रहे,धर्मकार्येसे रहित, मूख, और जो ख्रीमें अत्यन्त आसक्त हो ॥१००॥ और जिसका चित्त जुयेमें अत्यन्त छगा हो सबेदा पराधीनतामें * रहनेवाला और भ्राद्धदान रहित मनुष्यके दग्धहांकर भस्म होगे तवतकही अशौच है ॥१०१॥ द्वे कच्छे परिवित्तेरतु कन्यायाः कृच्छूमेव च॥ कृच्छातिकृच्छूं मातुः स्यात्पितुई सांतपन कृतम्‌ ॥ १०२ ॥ कुब्जवामनषंठेषु गद्ददेषु जडेंषु च॥ जात्प॑धे बधिरे मूके न दोष: परिवेदने ॥१०३॥ हीवे देशांतरस्थे च पतिते ब्रजितेपि वा ॥ योगशासत्राभियुक्ते च न दोषः परिवेदने ॥ १०४ ॥ पिता पितामहो यस्य , अग्रजों वापि कस्यचित्‌ ॥ अभिहोत्राधिकार्यरिति न दोषः परिवेदने ॥ १०५॥ पारिवित्ति(१) मनुष्य दो श्राजापत्यको करै तो बह शुद्ध होताहेै, और परिवेत्तासे विवाहिता” . कन्याको एक प्राजापत्य करना होताहै;और कन्याकी माताकों ऋच्छू अतिकृच्छू करना योग्यहै,. और कन्याके पिताको सान्तपन करना चाहिये॥ १०२ ॥ वडा भाई यदि ( जो ) कुबडा, बौना, वावलछा, जन्मसे अंधा, जन्मसे वहरा, गुंगा, जनसमाजमें: निंदित, तोतछा, और बेदके पढनेमें असम हो तौ छोटे भाईका प्रथम विवाह होजानेपर उसे दोष नहीं छंग्रेगा ॥ १०३॥ बडा भाई यदि नपुंसक, विदेशी, संन्यासी, पतित और योगशास्रमें रत हो ( योगाभ्यास करनेके कारण उसकी विवाहमें इच्छा नहीं हो ) तो उसे भी परिवेद्नमें दोष नहीं होगा || १०७॥ जिस मनुष्यका पिता, पितासह, वढाभाई यह्द अभिद्दोश्रके अधिकारी हुएहें, पीछे यह महुष्य (आ्रयश्वित्त करके ) अभ्निको अहण करे तो बडे साईसे विवाह करनेमें दोषी नहीं होगा ॥ १०५॥ __ विवाह करलेमें दोषी नहीं होगा ॥ १०७॥_ ७.३. 3 ऑऑः १ बड़े भाइका विवाह होजानेके पहले ही जो छोटेका विवाह होजाय तो उठ छोटे भाईको “परिवेत्तारः और वडेको “परिवित्ति”? कहतेईं ।




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