भारतीय चित्रकला में नारी अंकन | Bharatiya Chitrakala Main Nari Ankan

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Book Image : भारतीय चित्रकला में नारी अंकन  - Bharatiya Chitrakala Main Nari Ankan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भा० चित्रकला में नारी अंकन ५ ध दैनिक कार्य सभी दर्पण की भांति कला के द्वारा प्रतिविम्बित हो जाता है। नारी का सहयोग स्पष्ट ही उजागर होता है। वास्तव में कला काम की प्रेरणा शक्ति है। कला प्रेरक है। सत्य तो यह है कि सृष्टि की जीवन--क्रिया ही काम के रूप में प्रगट होती है। धार्मिक ग्रन्थों से इस बात का पता चलता है कि ब्रह्मा भी जब सृष्टि की संरचना करने में असफल हो गये तब उन्होंने सहयोग के लिए शक्ति की आराधना की. तब शक्ति ने बिन्दु रूप धारण किया। तदन्तर शिव तेजस्वरूप होकर उसमें प्रवेश कर गये। इन दो वस्तुओं के संयोग से नादतत्व (स्त्रीत्व) का जन्म हुआ। इसी नाद और बिन्‍्टू के संयोगिक अवस्था को हम अर्धनारीश्वर कहते हैं। यही संयुक्त बिन्दु पुरूष और स्त्री के आकर्षण का कारण बना। इसीलिए इसे काम की संज्ञा दी गई। हमारा धर्मशास्त्र इस बात का प्रमाण प्रस्तुत करता है कि उपर्युक्त दो विन्दुओं के अतिरिक्त श्वेत बिन्दु (पुरूष) और रक्त बिन्दु (स्त्री) दो अन्य विन्दु होते हैं। ये दोनों बिन्दु मिलकर ही कला का सृजन करते हैं। तभी तो कला के निर्माण में स्त्री की प्रमुख भूमिका है। भारतीय संस्कृति की पोषिका भारतीय नारी ही है जिसके मनमोहक सौन्दर्य में नाना गुण अन्तर्निहित होते हैं। नाना गुणों के कारण ही नारी को अनेक संज्ञा से विभूषित किया गया है और उनके रूपों का उन रूपों के भिन्न-भिन्न मुद्राओं का चित्रांकन ही भारतीय चित्रकला की धरोहर हैं। विशेषकर उत्तर-मध्ययुगीन चित्रकला में चित्रों का सर्वथा अभाव तो है ही किन्तु जो लघु चित्रकारी पुस्तकों में देखने को सुलभ हैं- वे भी नारी के नाना अभिधेयों को उजागर करने में पूर्ण समर्थ हैं। समय-समय पर चित्रांकित जैन गाथाओं में भी. नारी अंकन देखने को मिलता है यही नहीं कहीं कहीं भित्ति पट्टों की चित्रकारी में नाना शैलियों में नारी अपना प्रतिनिधित्व करती टिखालायी गयी है। जिसने ब्राह्मण की अष्ठवर्षीय कन्या का वस्त्र अलंकरण एवं चन्दन से अर्चना कर लिया उसके द्वारा भगवती प्रकृति स्वयं पूजित हो गयीं ऐसा माना जाता है। सभी प्रकार को




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