सप्तव्यसननिषेध | Saptavyasananishedha
श्रेणी : अन्य / Others
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1017 KB
कुल पष्ठ :
52
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(२५ )
भो देवाब्ुभिय 1 जो अपना हित चाहते हो तो मांस
भक्षण सवा परित्याग करना चाहिये, जिससे इस छोक
और परकोक दोनोंमें सुखी होजाओ ।
तीसरा व्यसन मादेरा पान ।
कली नया है
इस ज्यसनसे प्राणी अपने द्रव्य और चुद्धिको न्ठट कर
देता है तया कुठम्व परिवार राज-दखारादियें वड़ी दुर्दशा
करता है स्थान २ पर हेंसीके पात्र होता है देखिये
कहा भी है--
हे
2.
दाहा ।
नशा न नरको चाहिये, द्रव्य बुद्धि हर लेत ।
नीच नशाके कारणे, सब जग ताली देत॥१॥
नशेके अन्दर वे भानता होजाती है जिससे द्वव्यका
नष्टपना होकर कंगाली दशामें प्राप्त होजाता है, कुडुम्बका
पोषण करना कठिन होजाता है, तथा ज्ञान नष्ट होनेसे
अब्ान दशामें व्तेता हुआ नाना प्रकारके अकृत्य करके
दुर्गतिका भागी होता है ।
मदके अन्दर मोहित हुए प्राणाकी कृत्याइृत्य कुछ नही
सूझता है, किसी करने कहा है--
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