महाभारत शान्तिपर्व ११ | Mahabharat Shantiparv 11
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
724
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्याय ७ ] १२ शान्तिपव । 5
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पुरा प्रलनुनेतुं वा नेतुं वाषप्येकतां त्व्या. ॥ ७॥
ततः कालपरीतः स वेरस्योद्दरणे रत) |
प्रतीपकारी युष्माकामिति चोपेक्षितों ्॒रया. ॥ ८॥
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इत्युक्तों धमराजस्तु सात्रा वाष्पाकुछेक्षणः |
# ७ ३५ #
उदाच वाक्य धरममात्मा शोकव्याकुलितेन्द्रिय/ ॥ ९ ॥
भचत्या गृहमंत्रत्वात्पीडितो5स्प्रीत्युवाच ताख॥ १० ॥
_ ४ ० ७. 0
शशाप च महातेजा; सवल्ोकेषु योषित। |
न शुद्यं घारयिष्यन्तीयेतर दु।खसमसन्वितः
११॥
स राजा पुन्रपोच्राणां सम्बन्धिसुहृदां तदा ।
आअरनुहिपम्रहदयों बसूवोद्विप्रचतनः
॥ ११॥
ततः शोकपरीतात्मा सधूप इव पावक। ।
निर्वेदमगमद्धीमान् राजा सन््तापपीडित।॥ १३ ॥ [१५७]
इति भ्रीमहाभारते शांतिपर्वणि राजधर्मानुशासनपर्व॑णि स्त्रीशापे पष्टी धध्यायः ॥ ६ ॥
वैशम्पायन उवाच- युधिष्ठिरस्तु धर्मात्मा शोकव्याकुलूचेतनः |
किसी भांति कृतकार्य न होसके । वह
कालके वशमें होकर सदा तुम्र छोगोंके
सड़ शब्रताचरण करनेमे प्रइत था,
इससे मैंने भी उसके पराक्रामको देखने-
की इच्छासे उप्के विषयक्ा इचान्त
तुम्हारे समीप नहीं पर्णन कि-
या। ( ५-८ )
राजा ध्रुधिष्ठिर इन्तीके बचनको
सुनकर आंखोंमें आंध्र, भरके यह वचन
बोले,-दें माता ! तुमने जो इस विषयको
छिपा रखा, इसी निमितत इस समय
मुत्षे इतना दुख तथा शोक हुआ है। ऐसा
वचन कहते कहते महा तेजस्वी राजा
युधिष्ठिरने अत्यन्त ही दुःखित दो कर
यह वचन कहके सम्पूर्ण स्तियोंकों शाप
दिया, कि, “ आजसे कोई स्ली भी
शुठ विचारको छिपानेमें समथे ने
होगी ” अनन्तर बुद्धिमान राजा युधि-
हिर, पुत्र, पोत्र, सम्बन्धी तथा इष्ट मि-
त्रोंकी शत्युकी सरण करके अत्यन्त ही
व्याकुल हुए; वह धीरे धीरे शोक तथा
दु/खसे अत्यन्त ही विकल होके धूर्णसे
व्याप्त अग्रिकी भाँति सन मदिन
चित्त होकर बहुत चिन्ता करने
लगे। (९-१३ ) [१५५]
82%. आछ
शातिेपचेभ छा अध्याय समाप्त
शांतिपर्वमं सात अध्याय |
श्रीवैश्वस्पायन मुनि बोले, धर्भात्मा
राजा युधिष्ठिर मद्वारथी कर्णक्रों सरण
करके शोक तथा दु।खसे व्याकुल होकर
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