श्री स्त्रीजातकम | Shri Istrijatakam
श्रेणी : ज्योतिष / Astrology
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
303
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका ।
अजीत
ज्योतिर्षितोररसिकाविज्ञापपामि/
हे श
श्रीकष्णचन्द, आनेदकन्द, नन््दनन्दन, भक्तनहितकरिर आस रसे-
हारी इंदमदहारी, श्रीगोवद्धनथारी मुरारीके चरणकमलका ध्यान करके
पहिले आायोवतोनिवासी परम कृपाड विद्वान के पादारविन्दीकी नमस्कार
हाथ जोडकर करताहँ, अब देखना चाहिये कि, परञह्म परमेश्वरने इस
असार संसाममें कैप्ती कैसी अड्डत विद्यायें जगद्वितायें बनाई हैं कि
जिनके जाननेसे इन पंसतरल्वोकरके रचित महुष्यका शरीर अद्वदेवन्नत
चौरासी छाज़ योनियेंम अग्नर्णाय गरिना जाता है और चड़ुधा इन
घिद्याओंके ज्ञाता मनुप्योर्मि भी देवताओंकि समान प्रजनीय होजाते है
ओऔर राजा महाराजा उनका अधिक सम्मान किया करते हैँ. इस समय
अन्य विधाओंके वर्णन करनेका कुछ प्रयोगन नहीं है. केवक संसारके
हित करनेवाले संपृर्णे धर्मोकी मूल ष्यो।तिष विद्याके, विपयमें निेदन
किया नातादै- जिस होगाशाद्तके जाननेसे प्रिकालदर्शी हरएक ग्राणे*
मात्रका शुमाशुभ फेर तीनों जन्मका बत्तलाया करते हैं और इस
विद्याके नियमोंपर चलनेवाले सत्पुरुषोंकों कोई भी दुःख नहीं होता है
ईंसमें सिद्धांत, संदिता, होरा, जावक, त्तानिक, प्रश्न, 2इ्ते इत्यादि
'खनेक भेद वर्णन किये ६« तिनमें जातकमागकी सच संसारी महुष्य
सवृत्त अच्छा मानत ६« क्य॥क जातकद्धाय मनुष्पका म्रत, सापप्यत्,
बर्तेमाव तीनों समयका यथोचित फल क्हाजाता है. उसके दो भेद
हैं, एक-मनुष्यवातक दूत्तरराज्लीजातक सो पहिछे मनुष्यमातक,
विपयका ज्योतिषश्यामसंग्रद नामका अंथ एकुपोंकी जन्मपत्के फलके
द्वितार्य संवद् १०७८३ मे नवान बनाकर खभ्रीक्षठगगाधपप्शु श्रीकृ
दणदासजीके कल्याण-मुम्मई “ ल्क्ष्मीवेकटेश्वर यन्नालयमें छपाऊर
प्रकाशित करचुताईं. अब खि्रियोके फलहिताथे आीमन्मद्ायना,
घिरज पीरशिरोमगि धर्मघुल्धर वइलरेदेशामिपति विउत्तइग्रपीश
User Reviews
rakesh jain
at 2020-11-22 13:52:13