महाकवि शुतुरमुर्ग | Mahakavi Shuturmurg
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
104
श्रेणी :
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No Information available about तारादत्त निर्विरोध -Taradutt Nirviridh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)काफी दिनों बाद वह ऐसे पद पर भासीन हुआ जहां से कुछेक ना
मर किन्तु ग्रवसरवादी, पदलोलुप, झयोग्प भौर नपुसकों को पत्नोत्मुख
करने के लिए सक्षम था । वह काफिर हो गया । तभी हिटलर की प्रात्मा
रे उसके शरीर में प्रदेश किया ग्रौर वह समय की नब्ज पकडते हुए दूसरी-
प्लीसरी किस्म के लोगों की पत्नियों की कलाइयां टटोलने लगा । देखते ही
देखते वह ग्रन्तःपुर से नही, झासपाप्त के स्थानों से भौरतें उठाने लगा ।
बह घिनोने व्यक्तित्व का किन्तु स्वय द्वारा सम्मावित व्यक्ति जीवन
जीने की नाटकीयता से जुडकर चमचे बनाने वाली फंबट्री का प्रधान प्रदश्धक
क्या बना, उसने निहायत बेहुदे लोगों की फोरमेन जेंसे पदो पर लगा
दिया | जब वह प्रमुक-प्रमुक व्यक्ति के घर पहुचता, वहा से फैक्ट्री में फोन
करके वर्णशंकर को बताता मैं यहां बंठा हू भोर उसकी वह् माजायज संतान
बात को प्रचारित कर देती | बाद में कानाफूसी को दात बेतार के तार की
तरह सर्वेश्न फैल जाती प्रौर सम्बन्धित व्यक्ति कसमस्ताकर रह जाता । दूसरे
दिन ऐसा ही कुछ दूसरे किसो व्यक्ति के साथ होता । विचित्र प्राणी उस
व्यक्ति की धनुपस्थिति में उसके घर पहुंचता झौर उसकी पत्नी से कहता
दघर से गुजरा था, चला प्ाया। प्राप कॉफी नहीं पिलायेंगी ?! था
“प्राप भच्छा खाना बनाती हैं, भूख लगी तो चला ध्राया ।' अथवा 'भापकी
देखे काफी दिन हो गये थे ॥ सीचा, कुशल-क्षेम ही पूछता चलू' ।/
और शॉल की तरह शालीनता झोढे हुए बेजुबान-सी वह शिष्ट
महिला नहीं चाहते हुए भी उसको भ्रादर देती झोर तभी वह वहीं से वर्ण
शंकर को फोनाता-पाज मैं यहां हू' श्रोर तत्काल फैबट्री मे कार्यरत बमचे
उत्त भहिला के साथ विचित्न प्राणो का नाम जोड़कर हर कोई मनगढन्त
कथा प्रचारित कर देते | उन दिनों फैक्ट्री में चमदों के साथ गात्तिप भी
तैयार किए जाते थे। यह कार्य वर्णशंकर को पत्नो बेगम खुरशीद किया
करतो थी |
एक दिन हमने उस विचित्र प्राणी को भीड़ से घिरे श्ौर किसी
महिला को चप्पर्तों से पिटते देखा । लोगों ने भी उसकी ऐसी मरम्मत की
कि कई दिनों तक प्रस्पताल की तारीखें गिनता रद्दा । बात ऊपर पहुंची
बाशमट्ट की भौरताना श्रात्मा
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