श्री गुरूजी समग्र खंड ७ | Shri Guriji Samrg [ Khand - 7]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
397
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इसलिए सर्व सुष्टि परिपालक, परमकृपालु दयानिधि श्री भगवान के
चरणों में सन्मार्ग-दर्शन के लिए, सत्पेरणा-प्राप्ति के लिए, सत्कर्मरति
उत्पन्न होकर तदनुरूप आचरण करने की शक्ति प्राप्त होने के लिए, अनन्य
भाव से प्राथना करता हूँ। (मूल मराठी)
२६ शमकृष्ण-विवेक्शनद प्रण्णीत वैश्थिष्टच्यपूर्ण डी
स्वामी रगनाथानदजी, नई दिल्ली २७ अप्रैल १६५४६
जापान में दिए गए उन दोनों भाषणों को पढने के पश्चातृ, पूर्व की
अपेक्षा मैं अधिक सतोप का अनुभव कर रहा हूँ। भगवान बुद्ध के बारे में
सोचने पर लगता डे कि आज भारत में उनके नाम को लेकर मात्र ऐहिक
एवं स्वार्थी राजनीतिक गतिविबियों में अनुचित लाभ उठाया जा रहा हे।
मानवता की आध्यात्मिक समुन्नति में बुद्ध का उग्र सन्यासब्रत ग्रहण और
खुले दिल से किया गया सर्वस्वार्पण अतुलनीय है। आध्यात्मिक उन्नयन के
माध्यम से स्नेह एव सहकाय, दया, अनुकपा एवं पारस्परिक सहयोग,
त्याग-भावना एव निरपेक्ष सेवा और इन सब श्रैप्ठ गुणों को अपने अक्षय
सनातन धर्म का सुविकसित मधुर कमल पुष्प की भाँति विकसन के स्वरूप
को आयहपूर्वक प्रस्तुत कर, इन विचारों का व्यापक प्रचार-प्रसार आज
अत्यत आवश्यक है। इसी से उनके नाम को लेकर आज भारत में अनुचित
प्रचार करनेवाले, उनके ही द्वारा धूमिल बना बुद्ध का रूप देखने से वच
सकेंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि आपका धर्म के मूलभूत सिद्धातों का चितन
और धार्मिक व्यवहारों की गहरी जानकारी के कारण आप भारत के
प्रदूषित बने वातावरण को, श्री रामकृष्ण-विवेकानद प्रणीत वेशिष्ट्यपूण
शैली से निर्मल करने में अवश्य ही सफल सिद्ध होंगे। दूषित वातावरण
शुद्ध करने का इससे अधिक उपयोगी कोई अन्य माग नहीं सीचा जा
सकता ।॥ (मृल अग्रेजी)
२७ शम सिछावसिद्धी च
श्री अमिताभ महाराज, पुरुलिया, विवेकानदनगर 9 जुलाई १६४६
संघ शिक्षा वर्ग अच्छे हुए। श्यामनगर में जाकर आपने
स्वयसेवर्कों को आशीवाद दिया था। बहुत ही आनद हुआ। सब बधुओं को
इस अनुयह से अतीव प्रसन्नता हुई।
श्रीशुरुणी समग्र खड ७ (१६)
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