राहुल सांकृत्यायन का कथा साहित्य | Rahul Sankratyayan Ka Katha Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
524 KB
कुल पष्ठ :
33
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहापण्डित राहुल साक-यायन का बव्यक्तिय | १५
सन १८२३ ई० से उनका विशपन्याना का आरम्भ होता ह। व प्रथम बार
सन् १६०३ ६० मे नेपात गय सने १६२७ <० मे प्रथम बार लवा यात्रा वी। बाद
मे ला स अह इनना प्रेम हो गया कि वहा वी तीए बार और याता वी तथा वहाँ
पर्याप्व समय तक टहर । लगा म व बौद्ध प्रम से प्रमावित हर और बौद्ध मिक्ष
१०
११
श३
बरन के लिए बुद्ध स्थाना का यात्रा बरनी चाहिय | रुप सम्बंध में रामउटार
ने सन १६१७ १८ ई० मे यशववनंगर हटाया वानिपुर उसनजञ्ञ हरदा”
प्रतापणट अहरौरा मच्णपुरा, माँसी आहि स्थानों का यात्रा वी 1 पर हाने
हासानजी वी गिथितता वे काौरण मिशतरी तयार करने का प्रयाम बट
बरना पता ।
सन १६६ ०० मे उ होन चित्त और उम्ब आस पास वे पता नी
यात्रा की ।
महात्मा बुद्ध व प्रति श्रद्धा उद्चत हान व कारण उादान बुद्ध के जीवन से
सरम्या बत्त स्थाना की यात्रा बरन का निश्चय विया । अत से १८६४० 7०
मे जुम्दिनी (बुद्ध का जमस्थान) वपिलवस्तु माथा डर अर (तिवाण स्थान)
सारनाथ, नाखहा बोधगया बी यात्रा परी
उनका ध्यान पठार वी आर से अभी हटा नही था। 4 वटान्त और मीमाया
पटना चा८त 41 इसी उदंश्य को लेकर स्वामी “रिप्रपतचाय वे पास तिर
मिशी (दल्लिण) पहुच । बर्टोँ रहते हुए अपना यात्रा काय जारी रखा। सन
१६२१ ई० मे रामउटार ने तगलौर मसूर और बुग प्राप्त की यात्रा को ।
मे गाघी व बत्ते हुये प्रभाव के कारण रामयठार वा ध्यात राजनीति की
भौर गया पर बुग को व एकदम छोड भी न सक्त थ। पिता जी की मत्यु का
समाचार पाकर वे कुग स छट्री लवर चो और मीध छपरा पह्च भर वाँप्र स
मे प्रविष्ट हो गय। सन १६२१ ०० से ७४० तक ये वाल में व राजनीति
मे सक्रिय भाग लने रह । सत्याग्रह क्िय भर जन में भी गये | अत इस वाल
में व नियमित रुप स यात्रा न बर सड़ । फिर भा सन १६ २७ (मा
अत) से डेट मास बे लिये वे नेपाल गये और सन १८६. ० मे प्रजाव कर
मोमा प्रात था भ्रमण बरत हुये काश्मीर पश्व । श्रोनगर लहाख परश्चिउमी
वियते और बुशहर रियासत की यात्रा वी ।
पाप्रस के सामपरे उस समय वाई विष वायत्रम ने टण बौट घम नो आर
आवधित होने के वारण उ ।ने लका जाते था निश्चय किया। महात होत
हुये १५ मई सत्र १६ ७ इ० वा सूवान (लंका) पहुंचे। तवा के विद्या
जार परिहार मे पठन पाठन वा काम करन लग । जलवा मे १८ मास (१३ मइ
१८२७ से १ लिसिस्यर १६२८ ६० तब) रहे। पहाँ बौद्ध घग और पाती
पाया के सम्बंध मे पर्याप्त चान प्राप्त विया ।
१ टिसम्बर सन १०२८ इ० वो रामस्टार लक्ता स मारत व लिए रवाना हुये ।
भाषी कोशाम्बी क्सथा (कुणीनगर) आटि बौद्ध रथाना की यात्रा करत ६ुय
छपरा प,च ।
१३ वोट घम थे प्रथो भी प्राप्ति ब॑ लिय रामयटार भू ति बत जान वा निश्चय
दिया गुप्त रूप स नेपात पार यरत टुय १६ जुचा” सन १६२६ ४० को के
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