राहुल सांकृत्यायन का कथा साहित्य | Rahul Sankratyayan Ka Katha Sahitya

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Rahul Sankratyayan Ka Katha Sahitya by प्रभाशंकर मिश्र - Prabhashankar Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहापण्डित राहुल साक-यायन का बव्यक्तिय | १५ सन १८२३ ई० से उनका विशपन्याना का आरम्भ होता ह। व प्रथम बार सन्‌ १६०३ ६० मे नेपात गय सने १६२७ <० मे प्रथम बार लवा यात्रा वी। बाद मे ला स अह इनना प्रेम हो गया कि वहा वी तीए बार और याता वी तथा वहाँ पर्याप्व समय तक टहर । लगा म व बौद्ध प्रम से प्रमावित हर और बौद्ध मिक्ष १० ११ श३ बरन के लिए बुद्ध स्थाना का यात्रा बरनी चाहिय | रुप सम्बंध में रामउटार ने सन १६१७ १८ ई० मे यशववनंगर हटाया वानिपुर उसनजञ्ञ हरदा” प्रतापणट अहरौरा मच्णपुरा, माँसी आहि स्थानों का यात्रा वी 1 पर हाने हासानजी वी गिथितता वे काौरण मिशतरी तयार करने का प्रयाम बट बरना पता । सन १६६ ०० मे उ होन चित्त और उम्ब आस पास वे पता नी यात्रा की । महात्मा बुद्ध व प्रति श्रद्धा उद्चत हान व कारण उादान बुद्ध के जीवन से सरम्या बत्त स्थाना की यात्रा बरन का निश्चय विया । अत से १८६४० 7० मे जुम्दिनी (बुद्ध का जमस्थान) वपिलवस्तु माथा डर अर (तिवाण स्थान) सारनाथ, नाखहा बोधगया बी यात्रा परी उनका ध्यान पठार वी आर से अभी हटा नही था। 4 वटान्त और मीमाया पटना चा८त 41 इसी उदंश्य को लेकर स्वामी “रिप्रपतचाय वे पास तिर मिशी (दल्लिण) पहुच । बर्टोँ रहते हुए अपना यात्रा काय जारी रखा। सन १६२१ ई० मे रामउटार ने तगलौर मसूर और बुग प्राप्त की यात्रा को । मे गाघी व बत्ते हुये प्रभाव के कारण रामयठार वा ध्यात राजनीति की भौर गया पर बुग को व एकदम छोड भी न सक्त थ। पिता जी की मत्यु का समाचार पाकर वे कुग स छट्री लवर चो और मीध छपरा पह्च भर वाँप्र स मे प्रविष्ट हो गय। सन १६२१ ०० से ७४० तक ये वाल में व राजनीति मे सक्रिय भाग लने रह । सत्याग्रह क्िय भर जन में भी गये | अत इस वाल में व नियमित रुप स यात्रा न बर सड़ । फिर भा सन १६ २७ (मा अत) से डेट मास बे लिये वे नेपाल गये और सन १८६. ० मे प्रजाव कर मोमा प्रात था भ्रमण बरत हुये काश्मीर पश्व । श्रोनगर लहाख परश्चिउमी वियते और बुशहर रियासत की यात्रा वी । पाप्रस के सामपरे उस समय वाई विष वायत्रम ने टण बौट घम नो आर आवधित होने के वारण उ ।ने लका जाते था निश्चय किया। महात होत हुये १५ मई सत्र १६ ७ इ० वा सूवान (लंका) पहुंचे। तवा के विद्या जार परिहार मे पठन पाठन वा काम करन लग । जलवा मे १८ मास (१३ मइ १८२७ से १ लिसिस्यर १६२८ ६० तब) रहे। पहाँ बौद्ध घग और पाती पाया के सम्बंध मे पर्याप्त चान प्राप्त विया । १ टिसम्बर सन १०२८ इ० वो रामस्टार लक्ता स मारत व लिए रवाना हुये । भाषी कोशाम्बी क्सथा (कुणीनगर) आटि बौद्ध रथाना की यात्रा करत ६ुय छपरा प,च । १३ वोट घम थे प्रथो भी प्राप्ति ब॑ लिय रामयटार भू ति बत जान वा निश्चय दिया गुप्त रूप स नेपात पार यरत टुय १६ जुचा” सन १६२६ ४० को के




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