श्री गुरूजी समग्र खंड ११ | Shri Guriji Samrg [ Khand - 11]

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Shri Guriji Samrg [ Khand - 11] by हेडगेवार - Hedgewaar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उन्मुक्तता हु सत्र शोगने के लिए आधुनिक सभ्यता का दूसरा लक्षण उन्मुक्तता, प्रशातता का विरोधी है। हमारे प्राचीन धर्मग्रथ उस समय का विवरण देते हैं, जब समाज-व्यवहार का कोई नियम या आचार-सहिता नहीं थी। तव मनुष्य-मनुष्य के बीच श्रुता व सघर्ष की वृद्धि हुई। इसने हर दिशा में अराजकत्ता को बढावा दिया। परिणामस्वरूप मन की शाति को भग करनेवाली अनिश्चितता, आशका, भय, विद्वेप, घृणा इत्यादि प्रवृत्तियों का आविर्भाव हुआ। इसलिए मानसिक अशाति को दूर करने में सटायक तथा सतुलन का पुन स्थापन करनेवाले व्यवहारगत नियमों की रचना की गई। ये आधुनिक समाज गत एक या दो शतादिदियों में ही उद्भुत हुए हैं। अत भीतिक सपन्नता और वैज्ञानिक तकनीकी उपलब्धियों की ऊपरी जगमगाहट के आधार पर मानव के आवश्यक पक्षों के सबंध में इनके अल्पकालीन अनुभवों से निष्कर्प निकालना निरापद नहीं है। जीवन-सबंधी दृष्टिकोण के विषय में सही धारणा का निर्माण सुदीर्घ व स्थायी अनुभवों की कसौटी पर कसकर ही किया जा सकता है। दोनों का वास्तविक समन्वय ही सच्चे सुख की ओर ले जा सकता है। हमारे राष्ट्रीय जीवन का लाखों वर्षो का अनुभव कहता है कि अनत इंद्रिय सुख की कामना और इसकी तृप्ति हेतु उन्मादी प्रतिस्पर्धा कभी भी सुख-प्राप्ति का साधन नहीं हो सकती। इसने हमें व्यक्ति-विकास एव समाज के ताने-बाने की सुरक्षा के लिए आत्मसयम की साधना का पाठ पढाया है। आत्मसयम की भावना की जागुति के लिए चतुर्दिक पुरुषार्थ-चतुष्टय की अवधारणा की गई है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का यह चत्ुर्विध लक्ष्य आत्मसयम, सतुलन और समरसता से पूर्ण जीवन जीने में सहायक होता है। व्यवस्था हमें व्यक्ति व समाज के प्रति अपने कर्तव्य एव दायित्व का निरतर वोध कराती रहती है। “धर्म”, अर्थात्‌ व्यवहार सहिता वह प्रेरक तत्त्व है, जो जीवन के सभी उत्कृष्ट आनद प्राप्त करने के लिए हमारा मार्मदर्शन करता है तथा जीवन के सभी भौतिक पक्षों- अर्थ (राजनीति एव अर्थशास्त्र) और काम (भीतिक इच्छाओं की पूर्ति) पर अकुश रखता है। जीवन-शरिता क्ठे तटबध इन आचार-सहिताओं की भाव-भावना का उत्कृष्ट लक्ष्य अर्थात्‌ हमारे अस्तित्व की वस्तुस्थिति अथवा पुरुषार्थ का अतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त श्री शुरुकी समझ खड ११ [१] 1 4




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