भद्रबाहूंसहिता | Bhadrabahunshita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घ० भद्रबाहुसंडिता दु इृद्िए भा शाखनों विचार करतों क्ापणने अणाशे के मलुप्यजीवन साथे आावो केटछो निक्टनी अने हितभरेठो संपन्व रहेलो छे. आ शास्नी आधुनिक दृष्टि: संशोधन थवानी आवश्यकता का निमितशास्तरना क्ानना प्रदेशमों कया कया विषयोनों अस्तभौव थाय छे त्तेनी सूचि प्रस्तुत अस्यना 'अंगर्सचय! नामना प्रधम अध्यायना छोक 1७-१६ माँ आपेली छे. भ्ने तेलुं ज विस्तृत वर्णन लें पीना अध्यायोसों फ्रमसरयी आपयामां सरा्यु छे. भा वुँ ज वर्णन तथ्यभरेलुं छे अने एमां कहेली बधी इकीकतों स्वेधा स्राची ज छे, एम तो कोई न ज मानी शके, कारण के आमानी केटटी य इफीकतों स्पष्टरूपे एवी जणाती के जे केवल करपनाप्रसूत होई क्रापणने कोई पण रीते बुद्धिगम्य श्रवीव नहिं थाय; परंतु ते साथे घीजी भमेक हक्रीकतो एर्री एण जणादों के जे अविसंवादी फ़छ बतावतारी अने कथित परिणामनी अशुमूति करावनारी ऐे पूर्व काठमा ले ऋषि-मुनिशे्ठ का श्ञाननों उपदेश क्यों छे भने जे विदृवानोए भा विपयना शास्घोनी संकलमा के रचना करी छे, ते कांई मात्र तेमना पोताना जु अनुमवना फ़छना परिणामरूपे छे एम तथी. लेंकडो- इजारों वर्षो जेटला ब्यवीद थएला सुददीर्ध कालमां, तेम ज हजारों योजनों जेटला च्यापेढा विस्तीर्ण भूप्वेशमा, उत्पन्न धुल भसंख्य विचारशीर ने अवछोकनप्रिय व्यक्तियोना विविध अलुभवो लने ते उपरथी यएडां अन्वय व्यतिरेका- ध्मक झजुभानोना परिणामरूपे भा शाद्नो प्रादुमाद अने विकास थयो ऐे. शल्वत्त, आ्ापणा शासखकारोनी मान्यता तो एुरी रही छे के का शाखोना भूछ उपदेष्ठ ऋषि-सुनियो ऋद्गौकिक अने दन्द्रियावीत एवं दिव्यज्ञानना धारक हता भने लेमगे पोहाना ए दिव्यज्ञानना प्रभाये ज्ञ प्रहृतिनां बचा रदस्यो संपू्ग पणे जाणी लीपां इठां, परंतु आधुनिक विशाने साधेली व्ियाना सर्वप्रदेशोनी जदूभुत सिद्धिलो उपरधी आपणें जाभी शकिए छिए के झापणा प्राचीन शाखकारोनी ए मास्यता, प्रायः पृर्वपुस्पोष्त साहात्म्य थतावदा धरदी ज॑ हकीकत सूचवतारी छे, एथी दिशेष कोई मदखव, एु मान्यठाने आपवा मादे भापणने कझुुँ सा विशिष्ट प्रमाण भ्राप्त थ्॒तु नथी. परंतु ते साथे एट्खें भापणे जरूर मानी शविएु के प्‌ ऋषि-मुनियोमों एवी पण केटलीक विशिष्ट क्राध्यात्मिक शक्तियों खौलेली हशे जेता प्रभावे प्रहूतिनी केटक्रीक निगूढ रचनाओं अने सेना कार्ये-कारणभावोनु रदस्यज्ञान तेमने बधारे स्पष्टटाथी ्रकलित थतु हे. क्षा निमिसशास्रशठ विपयो अने पिचारोल संशोधन इंप्टिप्‌ ज्यारे लापणे अध्ययन कझने सदन करिए छिए हारे झापणने जणाथ छे क्े-एमांनां देठ्छांक सिद्धास्तो झने मन्तच्यों लजुभवश्ञानगा लाधारे अ्रतिपादित भएछा ऐ, केटछांक अलुमानजञानना आधोरे आलेखित थएुलो छे अने केटछांक कल्पना अने अमणानां आाधारे पण ग्रसूत थएएा छे. पूर्वकावूमों ला बधों सिद्धान्तों लते मन्तब्योमूं तथ्यातध्यपशु जाणवा के सेममुं प्रयकक- रण करवा भारिनां सेवा कर्शा विशिष्ट प्रकारनों अन्य साथनों उपल्य्ध न हतो. परतु आजे विज्ञाने यंतरविधानी के अदुमुद रचना निर्मित करी छे, ते द्वारा ग्रहृतिना क्रय भड्ढेय झने अतुमेय रहस्पोनों श्राकलन, उद्घादनः प्रस्फीटन आदि कार्यो यूद्र सरल झने सुयम बन्यां छे अने प्रतिदिन तेमां अकल्पित एवी श्रृद्धि थत्ती ज जाय है. तेथी क्पणां करा थकारता श्राचीन शाख्रोना विषयों अने विचारों अध्ययन क्षने संशोधन पण, सूतन विज्ञाननों मन्तव्यों, सेशोधनों झने उपकारणोनी सहायता साये श्लारभावां ओईए, अने एमॉपी देश्लु ज्ञान तष्प- भूत छे तेने प्थक्ठरण थदुं जोईए. संभव छे के एम करता, एमांयी भाएणने केटलॉक एवां सथ्यो पथ मछी झादे के ले दृजी सुधी उत्तद्विपवक विज्ञानरिशारदोनी कल्पनामां पण न्हिं क्राथ्यां होय- अस्तुत अन्धने (सैघी जैन ग्रस्थमाछा/मां प्कट करवानो म्हारी सुस्य हेतु एण एज रदेलों छे के भा रिप्यर्मा रस धरावनारा विद्वानों, भा जातना सादिलमुं विशेष अध्ययत, अवछोकन, मदव छने संशोधन शादि कमबा प्रैराय झने खापगा पूर्व पुदशे जे कांई ज्ञानसपत्ति संचित अने संकडित करीने श्शपण्य सादे सकता गया ऐ, तैनो योग्य उपयोग याद. जो के आ ग्रन्यजु पार्सशेधन करवामो अष्यापक गोपाणए खूब ज थम उठाग्यों ऐे कने एनो शुद्ध पाठोद्ार करदा पुमणे सधाराक्य अथक प्रवक्ष कर्यो छे; छठों का वाघना म्राद्र सा्मेदरशेक पूरती ज उपयोगी समजबानी ऐ एम रिद्वान्‌ दाचफ्ोने उद्वाद विनम्र सूचन ऐे, कारण के पुना संपादनकायें मोटे जे ३-४ अतियों ग्रातत करदामो झादी छे झते जेमनो परिचय सपादके पोठाती प्रर्यावनामों आप्यो छे, ते यधी प्रतियोनी प्रतेक पक एंटटी दधी भ्रष्ट अने सम्रप्र वाचना परस्पर पुरड़ी दघी विसेबादी छे के सेना आधारे पे प्रन्यनों विशुद




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