श्रीमद्भागवद्गीता | Shreemadbhagwadgeeta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका । , कहिंदुओकेिए श्रीगीता और वेदांतरज़ इनका वढ़ा भारी दुरना है क्यों “कि तचा- $तचवविषेकेकोरिय ये ही दो प्रधान जाश्रय हैं हमलोगोंकी यह तामध्ये नहीं है जो हम इनदोनोका त्याग करके बेढसें तत्ायेक्नों निकाहुसके । मैने इस तखायेसुदशनीम कुछ दैष्णदातिद्धांतोका यथामति प्रतिपादन किले तथ अद्रैदके छुछ पदायोड1 ययाप्रति सेडन भी किले इससे किसी अहवैती महा- शयको सेद नहीं माननावाहिये क्‍यों कि एक तो अद्वैनमतसे जब वरह्मभिन्न पदाथमात्र मिथ्या ही है तो संडनमंडन भी मिथ्या ही है जौर संडनमंडनकी प्रथमसे ही चार चढी जातीरे अंदतवादका प्रधान ग्रंथ अद्वितातेद्धि भी वैष्णपोंके स्यायस्तका खेडर है रइतमिद्धिका भी तरेगिणीनागक प्रंय खेडन है इसीरीतिए मेने भी यहां लूमतमंडन तथा परमतरंडन हिखाहै । हिंदीभाषें यद्यपि खंडनमंडनके लेखकी कोई रीति नियत तथा सुंदर नहीं तथापि असंस्कृतब्नछोगांके उपचागर्थ चयामति लिख! ही है। और “णग उस खंडनमंइसमें प्रवेश्ष न करके केवल मूहमातके तलायेकी जानना चाहतेह उद- कलिए प्रयम मूठका जथ लिखकर फिर आगे शंकासमाधानादि हिखेंह जो गृह जाननम श्षम न हो। जाशा है किइस दीकामे वहुतसी छुटिएं रुगई होंगी उनके विडाबलाग अमाकरक उनको मुझे तुचना दें | मेरी यह टीका यद्यपि विज्लोग देखनेके योग्य नहीं तथापि बा मछुससपर तिक्तका जाधाद िथानातों पया इधर टकाका भी पिदानूछोग जाखाद लेक मेरे श्रम्की सफ़ कंझे । हे न अनितयणकी ओरमानुनसाप्रीको तथा अपने परावार्थप्रपरदेशिकओोरा- हीं वियाशरअगंगावर्णाबीजीकी अनंत साह्ंगानवद्न कर तया सब वैष्णाव- भागपताओं तंग निवेदनकर इस केखको तथा अंथकों समाप्त करताई । रा 35 3, | ई, १ 3017 भागवतकूपाकांक्षी आापका- पजादी हुदशवादार्यशादी श्ृ जता




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