ज्ञानसार ग्रन्थावली | Gyansaar-granthawali

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Gyansaar-granthawali by अगरचन्द्र नाहटा - Agarchandra Nahta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 ० छर श्रोमदू के समस्त पदों का सम्पादन कर दिया ।. अध्यात्म शान प्रसारक मंडछ की ओर से बसकझे प्रकाशन की बात भी चली । हमारे मित्र शो० मणिठाल सोदनलाल पादराकर प्रेस में देने फे छिण उनसे प्रेसहापी भी ले गये पर संपोगवश बढ प्रकाशित न दो सकी देखाई जी का सम्प।द्ति बोसदू के पद संग्रह क संदकरण अपश्य ही मदस्वपूर्ण होना पर खेश है कि उनके स्वर्गदास के अनतर उनका संग्रठ बहुत अम्तव्यत्त हो गया अतः बम्दई जाकर बचे हुए संप्रदु का अत्रलोकल करने पर भी वाउ प्रेतकापी ने प्राप्त हो सकी संभवत रहो कागजों में बह सध्ठ हो गईहोगी। जिस संप्रद के लिए स्कर्गी4 देसाई ने अपना जीवन छगा दिया था और रात को १२ ओर दो-दो धरने तक कठिन परिश्रम कर सेकड़ों नोदुख एवं प्रेकापियें सेप्रार की थी बनकी ऐसी दुरबस्था देखकर ट्द्य को बड़ा दी परिताप होता है ।. योग्य पत्तताधिकारी के अभाव में शादिखिक विद्वानों के क्रिए हुए परिश्रम योंदो बेकार हो जाते हैं । छगमग -ई धर्प पूज पूज्य श्रोभद्रसुनिजी महाराजने अध्या- स्मिक साघना की ओर उत्तरोत्तर बढ़ते हुए श्रीमदू की रघनाओ को अवछोकनाध इस से मंगवाया और उनका स्वस्यायक्र लन्हें प्रकाशन फी विशेष रूप से सूचना करते हुए आर्थिक सद्दायता का प्रबंध भी कर दिया । तदनुसार तोन बे पूर्व यह भंथ प्रेस में दे दिया पर प्रेस की असुविवादि के कारण यह भंथ इतने लम्बे अरसे से प्रकाशित दो रहा है। पूज्य भद्रमुनिंजी ने इसमें रही हुई अशुद्धियां और प्रकाशन विर्खंब के छिए दें मोटे छपाउंभ भो दिये पर दम निरुपाय थे । पढ़ले प्रंथ छोटे रूप में




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