विद्यापति | Vidya Pati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
72
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२. विद्यापत्ति में दो पद्य हूँ जिनमें शिवसिह की तुलना भगवान् विष्णु और भगवान् शिव के साथकी गयी है. केवल रूप में ही नहीं बल्कि उनकी निजी विज्षेपत्ताओं में भी और बिद्यापति कहते है दर्शन शौयें और ज्ञान इन तीनों का संयोग दुर्लभ है । सपुर्ण ब्रह्मांड मे तीन व्यक्ति ही इन्हें धारण करते है दो देवता विष्णु और किंवर तथा तीसरा मानव राजा शिवसिद्ट रूपनारायण । विद्ग्ध-कथा में विद्यापतति हते है कि लोकदिश्रुत राजा भोज के समान शिंवर्सिह भी कविता और कामिनी का सहुदय-प्रेमी था । उनके गीतों में यह भाव वार-बार लाता है । उसे पृथ्वी का कामदेव सौंदर्य का सहदय-प्रमी राजाओं में कलाकारों तथा कला व साहित्य को उदार संरखक कहा गया है । विद्यापति तो उसे विष्णु का ग्यारहुवाँ अवतार तथा कृप्ग के समान प्रेम का बितरकर तक कहते है । यह एक तथ्य है कि शिवसिह्ठ ने कवि को वह सब कुछ दिया जिससे उनका जीवन संपन्न और सुखी वना कितु कवि ने अपनी तरफ से अपनी कृतियों में विशेपतः अपने गीतों से शलाब्दियों तक सारे देश में उसे अमर बनाने के लिए सब कुछ किया 1 पुरुप- परीक्षा के तीसरे अध्याय की कथा सं० २६ में विद्यापति अत्यंत शावुकता पूर्वक मवि और उसके संरक्षक के संबंध का वर्णन करते हैं और कहते है कि कवि के शब्दों के द्वारा ही राजा का नाम युग-युगों तक याद किया जाता है। १३७० से १४०६ तक (९० वर्ष की उम्र से लेकर ६ की उम्र तक) दूसरे शब्दों में अपने पौरुप के संपूर्ण काल में विद्यापति शिवर्सिह के साथ रहे और जीवन का पूर्ण उपभोग करते रहे पुनर्जागरण की एक सच्ची प्रतिभा के समान वे अपने दु ष्टिकोण में अत्यंत्र प्रगतिशील थे अपने समय से आगे देखते थे और अपने सिद्धांतों पर इस प्रकार चलने का पूर्ण विश्वासमय साहस रखते थे जिससे न केवल तत्कालीन बल्कि सभी युग्ों के स्त्री-पुरुष प्रभावित होते । उन्हे शिवसिंह के समान राजा का पूर्ण विश्वास प्राप्त था और उसके उदार संरक्षकस्व में ने जीवन के हर क्षेत्र में अपने सिद्धांतों का इस प्रकार अनुसरण करते रहे जो साश्चयें प्रश्न॑ंसोत्पादक है । १. पुरुषपरीक्षा कथा सं० इह | रे. गीत सं० ० एविश देर एक देस्द | दे. संत २४० ०४ | ४. सं०् १२२ र४३ रट४ दे डे 1 2. सं० २० रविप्र रेदेल्। ् भ्ज . सं २४० ७३७ हे सं० ७४ रेप इ०० ७६७ यें और बाद की सभी संख्याएँ विद्यापति की पदावली (एन० पुप्त १११० के से हैं भय ठक्त कि मिर्वेश न हो
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