श्रीमदवाल्मिकीय रामायण भाग दूसरा | Shrimadvalmikiya Ramayan Bhag-2

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Shrimadvalmikiya Ramayan Bhag-2 by महर्षि वाल्मीकि - Maharshi valmiki

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १८ ) २२-रक्जकऋ सीताकी दो मांसकी स्षथि देना) सीताक्य उसे फरकारना फिर राबणध्म उसेँ घमकाकर राश्सित्रों के नियम्जणमें रखकर रिर्यो- खट्टित पुना मइछको प्लोट ष्यना हि २११-सप्रक्िषोका सीतानीको उमझाना दर २४-छीताडीक्य राफ्ठतिगेद्तरी बात माननेसे इनकार ढर देना तपा राश्सिगोंख्य उन्हें मारने-अटनेकी धमकी देना श्र५्‌ २५-साश्रतियोंक्ी ग्यत माननेसे इनकार करफे शोक- संतस्त सीताक्य बिक्म्मप करना द्श्ट २६-हीवाका करज-मिफ्मप तथा अपने प्राज्रोग्गरे स्पाग देनेका निम्मय करना ९२९ २३७-जिबिटाक्म स्वप्न, राछ्सोंके विनाश और भीरघुनाथछीदी विश्यद्री धुम सूचना ९११ १८-विद्धाप करती हुई छीदक्म प्राण-स्पागके छिये उद्चत शोना हि १९-सीजाभीके धुम झकुन ९१८ ३०-छीता्ीसे बार्ताक्पप करनेके विपयमें इजुमानअश्प दिजार करना ९१९ ३१-इनुमानअक सीताक्े मुमानेके क्लब भीयम कपाका बलन करना श्ड्र ३२-सीताबीका तक-बितष्े र्डर १६-सीटार्ीफ इनुमानबीको क्पना परिचय देसे हुए. अपने बनगसन अ्यैर अपहरणक्य इचान्त बताना र४ड५ १४-तीठाजीफय इनुमानबीके प्रति संदेश भौर उसका शमाघान तथा इनुमानभके हाय भीएमचरद्सी के गुर्णोका गन 3.8. | ३०-धीहारीके पूछनेपर इमुमानडीकय भीरामके छारीरिक बिएं स्सौर गुर्णोदर बणेन करना छम्य नर-वानर्ी मित्रद्का प्रसज्ञ पुनाकर सैठाजैके मन दिश्यस झत्यम्न करना ९४९ ३६-हजुम्पनूमी ध्म सीदाभ्े मुद्रिका देन, सौताषप यम कब मेरा ख्दार करेंगे यह झत्हुऋ होकर पृष्म्ना ठथा इमुमानछीकया भौरामके हीता दिपयक प्रेमकम बर्णन करके झम्हें डारना देना ६५ ३७ स्ेताप्म इनुमानडीसे भोरामध्ये शीम बुकनेष्य माग्रह। इनुमानमीसमम छीतासे अपने साथ घस्नेका अनुरोध तमा सोताका अखीक्ार करना ३८-सीताणीख्ा इनुमानऔषज्ये पहचानके झपमें शिजकूट पबठपर भटित हुए. एक क्पेपके प्रसकृक्े सुनाना मराबान्‌ भीरामको शीध्र बुझा झनेके किये अनुरोध करना और 'चूड़ामणि देना ९६१ ३९-चूड़ामणि छेकर लाते हुए इनुमानजीसे जैताका भऔीराम झ्मादिफे उत्साहित करनेके छिपे कहना दया समुद्र तरणफे बिफ्यमें शड्ित हुई ऐीताको वानरोंष्य पराक्रम बताकर श्नुमानडीक्ा आंश्यसन देना ९६८ ४ -उीदाका भीरामसे कइ्नेके रिये पुनः तदेश देना तथा शनुमानजीका सम*ें साश्वस्न दे ड्चर दिशाकी ओर दाना ९०१ ४१-इसुमानडीफे ह्वारा प्रमदावन ( अछोक- वाटिस्य ) कप भिष्यंस ९०३ ४२-राक्सियोंके मुखसे एक बानरके डाय प्रमदाबनक॑ विष्येसका समाचार सुनकर राकणका किंकर नामक रापसौंको मेसना सौर इनुमान्‌ पीके द्वारा उन तबका सेंदार ९७५ ४६३-इनुग्यनजीके वाया चैत्पप्राणदष्प विष्यस तमा उसके रघकोक़ा बम ९८ ४४-महस्त पुत्र ऋम्जुमाक्चीकर वथ ९७९ ४५-मस्त्रीफे सात पुर्जोका बध' ९८ ४६-राबपके पोंच सेतापतियोका बद ९८१ ४७-रागण-सुन अधकुमारका पराक्रम »र्रैर पथ ९८४ ४८-इमस्द्रष्यू और इमुम्मनदीकय युद्ध) टततके दिस्‍्माज़क शघनमें मंघकर इनुसामऔश्य एबणके दरबार डपख्ित दोना ब्टट ४९-राकणके प्रमाषशाश्री स्वस्पको देखकर इस॒मानजीके मनमें अनेक प्रष्परके विधाररोका क्द्ता ९९३ ५ -पबणक्म प्रह्ठके शाय इमुमामरीसे छड्डामें सनैष्य कारण पुछषान्य ओर इस॒म्स्यख्प अपने- हो मौयमञ्य दूद बताया रद




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