हिन्दी काव्य विवेचना | Hindi Kavya Vivechana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. इन्द्रनाथ मदन - Dr. Indranath Madan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यीर फविता २५
मिलते हैं। अधिकतर आपने द्विन्दू समाज और सस्क्ृति फो जगा-
ले का सफल्प जिया है। यह आदर्श आपक लगभग सभी ग्रन्थों में
मिलता है। “बेतालिक”, “द्विन्दू?, “गुरुडुल” और “अनघ” इन
चारों प्रन्थों फा छ्षेन्न दिन्दू समाज तक ही सीमित है। “साफेत”
आपका महाकाव्य है । इससे भी “रामायण” या “रामचरित मान-
स” फी कथा को लेकर नवीन ढग से समाज फे आदश को यड़ी
बोली में पेश किया है। इस तरह भारतेन्दु दरिश्चद्र ने हिन्दी
कविता मे ज्ञो थुगान्तर उपस्थित क्या, उसी फे फलस्वरूप सड़ी
बोली का प्रचार हुआ । देश को ऐसी भाषा की आवश्यकता थी
जिसे बहुत से प्रान्तो फे लोग समझ सके। भारतेन्दु से पद्ले
कविता प्राय प्रजभाषा ओर अबधी में लिसी जाती थी। मगर
नाम क्षोगों की वह भाषा न रद्दी । इनवा स्थान सडी बोली न
ले लिया। इस ज्षेत्र में गुम जी सर्वग्रिय ऊबि हें । गपपड़ी बोली
के फाय फी प्रगति को आप से बडी सदायता मिली है। आप
जैसे कवियों फे सडी बोली मे आ जाने से नवीन फवियों को
इस भाषा में लिसने का फाफ़ी उत्साह मिला है। मद्दाक॒बि गुप्त
का हिन्दी कविता में अमर स्थान है। एक तो आपने फिर से
समाज्ञ की मर्यादा को स्थापन करने का यत्न किया है | यह
मर्यादा अप्रेज़ी सभ्यता के आने से अस्तव्यस्त द्वो रही थी।
वबिसरे हुए आदशों को एक स्थान पर सगठित किया है और
इनका अमुसरण करने क लिए लोगो को सन्दुश दिया है। दूसरे
सड़ी बोली को स्थिर रूप दकर इसफो कविता की भाषा फ॑ योग्य
चनाया है ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...