अनुवाद की व्यावहारिक समस्याएँ | Anuvad Ki Vyavaharik Samasyaen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अनुवाद सिद्धात और व्यवहार | 27
सामग्री को समभ लेने के बाद अनुवादक दूसरे चरण 'भापा तरण' पर श्रा सफता
है। यहाँ वह त्लोत भाषा की अ्रभि-यक्तियों की समतुल्य श्रभिव्यवित्याँ लक्ष्य भाषा
से चुनता है। ये समतुल्य श्रभिव्यक्तिया शाद शादवबध पंदबध, उपवाबय श्रादि
छोटी भापिक इकाइयो में होती हैं। एस चयन म॑ अनुवादक' वा ध्यान पाच छह
बाता पर होना चाहिए (1)समतुल्य झ्भियस्तिया, ल्लोत भाषा की अभिव्यक्तियो
के प्रधिकाधिक निकट हा (2) वे क्थ्य का अधिकाधिव यथातथ तथा स्पष्ट रूप
में व्यक्त कर सकने मे समय हा, (3) ख्रोत-सामग्री की शली वावे श्रपेक्षित
प्रतिनिधित्व कर रही हा, (4) अनुवाद जिसके लिए किया जा रहा हो सभी
दृष्टियों से उसके लिए वे उपयुक्त हां, तथा (5) विषय की दप्ठि से भापा शली
के स्तर पर वे ठीक' हों ।
उपयुक्त पाचा का निवाह करते हुए अ्रनुवादक कभी भी भ्रपनी शली का पुर
भी देना चाहता है। यदि ऐसा भ्रपैक्षित हो ता चषित भाषिक इव/इयो को अनु
बाद की शली का यथासम्भव प्रतिनिधित्व करने भ समथ होना चाहिए ।
यहा प्राकर स्रोत भाषा की अभिययक्तििया वे समतुल्य लक्ष्य भाषा मं छोदी
भाषिक गभिव्यकितियों को पा लेने का काम पूरा हो गया । मूल अभिव्यक्ति सण्डं
में भाषान्तरित हो गई । इसके बाद श्रनुवाद व ग्रातिम चरण 'समायोजन का
बाम चुरू होता है। यहा झाकर लश्य भाषा म प्राप्त वघु प्रभिव्यक्तियो को कंथ्य
का पुरा ध्यान रखते हुए वाक्या व॑ रूप म समायोजित करत है। द्वितीय चरण की
पाँचों बाता वा ध्यान रखत हुए यहाँ लक्ष्य भाषा की प्रदृति पर सबस झ्रधिक
ध्यान दना पडता है, ताकि स्नात भाषा की कोई एसी प्रभिव्यक्ति भापातरित
हातर ल्क्ष्भभापा की श्रभि-यक्ति म नर जाए जो तक्ष्य भाषा भी अपनी न हो ।
इस समायोजन म स्रोत भाषा के एक वाक्य को लक्ष्य भाषा के! एकाधिक वाक््यों
मे रख सकते हैं या एकाधिक वाक्यो को एक मे मिला सकते है । समायोजित रूप
को सावधानी से देखकर इस बात का भी विचारकर लेना चाहिए कि स्रोत सामग्री
के मुहावरे-लोक्ोक्तिया आ्रादि ज्या-वे त्यो न झा गए हा । यदि इस पकार का
काई भी तत्त्व खटकने वाला हो तो दूधरे चरण पर फिर लौटकर उसे ठीक कर
लगा चाहिए।
कुछ व्यावहारिक बातें
यहा अनुवादक वी सहायता के लिए कुछ एसी यावहारिक बाता की आर
सबंत किया जा रहा है जिनमे कुछ अटपटी होती हुई (मूल के वुछ भ्रश का अनु-
बाद म लोप, नए ग्रद्न का झागम, वचन लिय परिवतन मूलनिष्ठ अनुवाद छोडकर
भावानुवाद या व्यास्था) भी यथासमय +रणीय होती हैं कुछ भ्रकरणीय होती
हैं तथा कुछ ऐसी होती हैं. जिनका घ्यान रखते पर अ्रनुवाद श्रमिक अच्छा हा
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