वेदविद्या - प्रवेशिका | Ved Vidha Praveshika

Ved Vidha Praveshika by कर्पूर चन्द्र कुलिश - Karpoor Chandra Kulish

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारे आण ड अक्सर या नव स्मििसि हमने ऊपर बताया कि अन्न मे पृथिवी अन्तरिक्ष और चुनोक तीनों का योगदान रहता है किन्तु रेप है कि इस अन्न में मुख्य भाग क्योंकि ठोस अश का रहता है जिसे हमने दधि कहा है| इसलिए अन्न में मुख्य अश पृथिधी का रहता है किन्तु माण में मुख्य अश वायु का है और वायु अन्तरिक्ष में रहती है इसलिए अन्न का सम्बन्ध जहाँ पृथिवी से माना जाता है वहां आ्राण का सम्बन्ध अन्तरिक्ष से माना जाता है । वायु कहो या श्राण यही गति का कारण है 1 प्राण के कारण ही हमारा शरीर कुछ भी कर्म करने में समर्थ होता है । प्राण हमार शरीर मैं तो है ही हमारे शरीर के बाहर भी सर्वत्र व्याप्त है । हमारे शरीर में जो प्राण है उसे अध्यात्म मराण कहा जाता है । हमारे शरीर के बाहर रहने वाला आाण अधिदेवत कहलाता है । पहले पाठ में हमने भूभुव स्व अर्थात्‌ पृथिवी अन्तरिक्ष जा लोक की चचां की । हमने यह भां बताया है कि इन नोन लाकों कं क्रमश तीन दवता हैं वसु रुद्र और आदित्य । इन तीन देवताओं के हीं दूसेर नाम आंगन वायु और आदित्य है । इन तीन देवताओं के आधार पर हमारे शरीर में भी आआण के तीन भेद हो जाति हैं आन से जुड़ा श्राण श्राण कहलाता है वायु से जुडा प्राण अपाने कहलाता है और आदित्य से जुड़ा प्राण व्यान कहलाता है ) इनमें पार्थिव प्राण तथा वायव्य अपान दो्ों गतिशील हैं किन्दु सौर व्यान स्थिए है । ठीक भी है क्योंकि पृथिवो और वायु दोनों चलते हैं सूर्य अपेक्षाकृत स्थिर है । यदि हम अपने श्वास पर ध्यान दें तो प्राण कौ इन तीनों स्थितियों को स्वय देख सकते हैं कि किस प्रकार श्वास नाभि तक आता है और पुन नाभि से लौटकर बाहर निकल जाता है | क्योंकि प्राण ही हमारे शरीर की क्रियाओं को सयमित करता है इसलिए जिसकी प्राण पर निमस्रेण हो जाता है उसका शर्गीर की सब क्रियाओं पर नियवण हो जाता है । आणायाम का इसी बाण बहुत महत्व है । प्राणायाम की क्रिया किसी जानकार गुरु से सीखकर करनी चाहिये । जब तक प्राणायाम को क्रिया सीखने का अवसर न मिले त्तब तक गहरे सास लेने का अभ्यास खुली हवा में ड साय करना चाहिये । उससे पूरे शरीर की शुद्धि होती है और व्यक्ति अनेक रोगों से बचा रहता है । उपनिपदों में एक कहानी के द्वारा बाण का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है । इद्धियों में एक बार परस्पर इस विषय को लेकर झगडा हो गया कि कौन सी इद्धिय सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ? आँख ने कहा कि मैं सबसे अधिक महत्वपूर्ण हूँ । अपने महत्व को सिद्ध करने के लियें आँख ने एक पुरुष को छोड दिया । एक साल बाद ऑँख वापिस आई और उसने पुरुष से पूछा कि तुम्हारा काम आँख के बिना कैसे चला । पुरुप ने कहां कि मैंने एक वर्ष ठसी प्रकार बिठाया जैसे सब अन्ये व्यक्ति बिताते हैं । इसके बाद श्रवणेद्दधिय ने भी ऐसा ही किया । वह पुरुष बिना श्रवणेस्ट्िय के एक वर्ष तक बहोर व्यक्तियों के समान जिया 1 इसके बाद जब प्राण की बारी आई और बढ़ शसेर छोड़ने लगा हो सारे इन्द्रिया कापने लगा । उन्होंने आण सं प्रार्थना की कि वह शरीर न छोडे क्योंकि प्राण के बिना उसमें से काई भी जीवित नहीं रह सकेगा । इस कहानी से प्राण की महत्ता सिद्ध होती है । शरीर में प्राण के स्वरूप को जान लेने के बाद संक्षेप में हद में भी भाण का स्वरूप जान लेना उचित होगा । तुमने कुछ शब्द सुने होंगे-कऋषि असुर राझस गन्यर्द देव इत्यादि । इन सब शब्दों का सम्बन्ध बाण से ही है अर्थात्‌ ये प्राण की ही विभिन काटिया के नाम हैं ऋषि उस प्राण




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