विद्याभवन राष्ट्रभाषा ग्रंथमाला | Bidya Bhawan Rashtra Bhasha Granth Mala

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : विद्याभवन राष्ट्रभाषा ग्रंथमाला  - Bidya Bhawan Rashtra Bhasha Granth Mala

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मधुसूदन प्रसाद मिश्र - Madhusoodan Prasad Mishr

Add Infomation AboutMadhusoodan Prasad Mishr

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भूमिका ( श्री ध्रुबनारायण त्रिपाठी शास्त्री सभापति, जिला कांग्रेस समिति, मोतिहारी तथा श्री सोमेश्वरनाथसश्बलालक मराइल, अरेराज ) संस्क्रत भाषा की अपेक्षा प्राकृत भापा अधिक कोमरू तथा मधुर होती है। 'परुसा सक्षअ-बंधा पाउञ-बंधो वि होड़ सुउमारो । पुरिसमहि- राणं जेसिआ मिहन्तर तेत्तिअमिमा्णं! अर्थात्‌ संस्कृत भाषा परुष ( कठोर ) तथा प्राकृत भाषा सुकुमार होती ढै। और इन दोनों भाषाओं में परस्पर उतना ही सेद्‌ है जितना एक पुरुष और स्त्री में । भाषा के अनुसार आज तक के समय को तीन भार्गों में विभक्त कर सकते हैं--संस्कृत, प्राक्त भौर आजकल की भाषायें; यथा---हिन्दी, मरादी, गुजराती और बंगला आदि। संस्कृत भाषा में हिन्दुओं के प्राचीनलम ग्रन्थ वेदों से लेकर काव्यों तक के ग्रन्थ सम्मिलित हैं। प्राकृत भाषा में बौ्ों तथा जनियों के धार्मिक अन्ध एवं कुछ काव्य अन्य भी हैं। इस भाषा का विकास ईसा से ६०० वर्ष पहले हो चुका था। प्राकृत भाषा की उत्पत्ति के निर्णय के पूज यह विचारना आवश्यक है कि 'किसी सी नई भाषा के जस्म की क्‍यों आवश्यकता पड़ती है ९” यदि हम छीग इस अश्न पर गौर से विचार करें तो यह स्पष्ट सालूस होी। जायगा कि मनुष्य कष्टसाध्य ग्रयक्ष करना नहीं चाहता । वह जिद्डा, कण्ठ, ताल भादि श्थानों से अधिक प्रयत्र द्वारा शब्दों का उच्चारण करना पसंद नहीं करता । यही कारण है कि धीरे-धीरे भाषा में कुछ 'विक्रृतियाँ जस्पन्न होती जाती हैं । कुछ दिनों के बाद उसी का एक स्वरूप चयन. जाता है, पही अधान बोछचाल की भाषा बन बेंठती है और उसी में काव्य आदि की रचना प्रारम्भ हो जाती है । वेदिक




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now