शिवराजभूषणकाव्य | Shiv Raj Bhushan Kavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)का कबिकी सश्मिप्तजीयनी (१७)
पणके नवरससपत्र ७० कमित्ते सनिवेशित कियेदँ (जी कावि सबत्
१०४९ में प्रिद्यमान थे, उपनाम आपका जिपाठी था )
इम शिवराजभूपण प्रथके अन्तमे इसकी रचनाका समय बिक्रमी सम्बत्
१७३०लिखा है और उससे यहभी स्पष्ट है कि शिवानीमहाराजर्ों राग्यति-
छक शालिवाहन शके १९९६ में हुआना उसके एक वर्ष पहले कत्रिने इस
प्रयको निर्माण किया बोध होता है. इसम कम्रेंने अल्कार्रोका उत्तम
सीतिसे वर्णन किया है और उदाहरणोर्म जो पथ लिखे हें वह सर्वतोमाप
यशशाली महारान शिवाजीके गुण और इत्तक्रम वर्णनसे परिपूर्ण है प्रज-
भाषाके प्रसिद्ध कवि विट्रारालल और सीतछ हमारे इन्ही भूषण क-
विके बशज थे यहाँतक कत्रियज भूपणकी सक्षिम जीवनीका इत्तात ल्ग्य
समाप्तिके पृ उस स्वेज्ञ सयशक्तिमात जगदीक्षरके चरणकमलोंर्म कोटिश
ध यवाद और प्रणामपृष्पांजलि निवेदन करते हमको महाद् आनद और उ
ध्माह होता है कि जिसने आज इस दुर्लभ और प्राचीन /शिवराजभूषण”
नामक काव्यप्रथकी द्वितीयाइत्ति प्रकाश करनेमें हमें शक्तिमान क्रिया
यह अपूर्व और प्राचीन प्यकी एक प्रति रीवा और जयपुर महारा-
जा ल्म्धप्रतिष्ठ महाशय त्रिपाठी श्रीयुत स्थामनाथनीके प्रममग्रहालयपें
जयपुर मद्ाराजाभित मद्ामहोपाध्याय पंडित श्रीदु्गाप्रमादजी द्वारा मुर्बाौ्के
प्रसिद्ध विद्यान रा रा काक्ीनाथ पाटुरग परबको प्राप्त हुईथी
उक्त महाशय परनने वह पुस्तक रा रा जनादैन बालाजी भोडक
( डेकन कोलेज ) को प्रकाश करनेकेछिये दिया महाशय मोडकनें उक्त
पढ़ित ढुर्भाप्रसादजीकी सहायतास शुद्ध कर “महाराष्र काब्वेतिदास
सम्रह” के तीसमें खड़मे इसरी सन १८८९ मैं उपा प्रसिद्ध किया
सच्न है कि ये तीनों अहस्थ (पडित दुगोग्रसादजी, पर्व और मोडक)
जो परिश्रग न कले तो सिसमें आयेधमैंसरक्षक महाराजा शिवाजी
उनत्रपतिकी अप्रतिम बीरताका वर्णन है ऐसा यह ग्रध असिद्ध न होता
बास्तव्मे ये तीना महाशयोंका समस्त मद्दारा्ट्््रजाके उपरही नहीं किंतु
आर्यधर्मामिमानी, काव्यज्ष, रसिक, सुहृदय लोगोपरभी भवर्णनीय उपकार
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