कितना सुन्दर जोड़ा | Kitana Sundar Joda

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Kitana Sundar Joda by सुरेन्द्र वर्मा - Surendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फिर बड़े मीठे ढग से मुस्करायी, “सच तुझ पर खूब खिल रहा है। देख यहाँ कही काजल तो नही”! क्यों 2” “तुझे डिठौना लगा दूं । *“कही मेरी नजर न लग जाये ।” “अड४5४ जिज्जी 5 ई ई“ व” उन्होंने हेंसकर उसका माथा चूम लिया । फिर घीमे स्वर में कहा, “सुन उम्मी ! मैंने चंस्टर छुपाकर मँंगवाया है। तेरे जीजाजी से कह दिया था कि वे इसे किसी वैग-वैग में रखकर लायें, ताकि कोई देखे न | --बीना को भी एक साडी दे रही हूँ ।**'चाची से कह जाऊँगी कि मैंध्ये चीजें दिल्‍ली से ही लायी थी ।” उन्हें जरा खाँसी आ गयी, “यह भी कह दूंगी कि वे मझली चाची से कुछ न कहें ।***राजू-रेनू को कुछ दिया नही, उन्हें बेकार बुरा लगेगा । “*“ठीक है न ? ” शाह हुए 11 उसने चैस्टर उतारकर पैकेट में रखा, मोट वादामी कागज में हल्की खरखराहट हुईं। ऊपर पहले की ठरह पतला, लाल रेशमी फीता बाँघ दियां। बेंधेरा छाने लगा या, सो बत्ती जला दी। 'छोटा-सा कमरा! बीच में दो चारपाइयाँ***एक पर सिरहाने लपेटा हुआ विस्तर रखा था। नीली, पीली और लाल घारियों की दरी में से सफेद चादर का एक छोर बाहर निकल आया था । एक सरफ दीदार से सटे, इंटों पर रखे दो-तीन ट्रेंड, जिनका रंग-रोगन उतर चुका था और परी हिस्से पर लवे-लंबे खरीच के निशान ये ।**सामने खिड़की पर पिछवाड़े, निचले खंडहर में लगे नीम की घास्ें फैली थी 1 कुछेक पतली-पतली टहनियाँ ससाषों को छू रही थी | सपाट काली, नंगी भार्खें जिनके पत्ते झर चुके थये। हवा में टहनियाँ हल्के-हल्के खटखटाती, जैसे कुत्ता मूपी हृद्ढी चवा रहा हो 1 बायी तरफ की शक मोटी-सी डाल पर वल्व के प्रकाश में तीन सलाखों वे संबे साये उभर आये थे *“टेढे-मेढे ***घुँंघले साये*** जिज्जी की चूडियाँ खनकीं । वे उसकी तरफ पीठ किये, सूदकेस पर घुकी कुछ कपड़े तह कर रही थीं। कमर में खोंमा हुआ साढी का छोर दीत्ा हो गया था और गोरी, उजली गर्देन में पड़ी चेन रोशनी में शिल 2-8:




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