मुझे चाँद चाहिए | Mujhe Chaand Chahiye

Mujhe Chaand Chahiye  by सुरेन्द्र वर्मा - Surendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिलबिल... अनुष्ट्रप ने दोहराया। माँ का तरकारी काटना भी रुक गया और किशोर की जूतों की पॉलिश भी। ऊपर मुंडेर से स्वर सुनायी दिया क्या ? उत्तर माँ ने दिया ददूदा बुलाते हैं। शर्माजी दरी पर ब्रैठ चुके थे। उन्होंने बगल में रक्‍्खा तम्बाकू का डिब्बा उठा लिया था। सिलबिल सहजता से नीचे आ गयी क्या है? शर्माजी ने उसकी ओर देखा रंगमंच की शब्दावली में यह नाटकीय सक्षमता थी। शर्माजी को यह पता नहीं था कि आने वाले समय में सिलबिल ऐसे अनेक अवसर सुलभ करवायगी तुमने अपना नाम बदल लिया है? सिलबिल ने अपराध-भाव से नीचे नहीं देखा। वह पूर्ववत्‌ सामने देखती रही हाँ। उसका स्वर स्थिर था। काहे? मुझे अपना नाम पसंद नहीं था। पल भर की चुप्पी रही। अगर हाईस्कूल में नहीं बदलती तो आगे चलकर बहुत मुश्किल होती। अखबार में छपवाना पड़ता। सिलबिल ने आगे जोड़ा--वैसे ही समतल स्वर में। इस नाटकीय दृश्य के तीनों दर्शक भी अवाक्‌ थे। जैसे मंत्रबिद्ध-से बौप-बेटी को देखे जा रहे थे। जब शर्माजी ने सिलबिल को पुकारा तो माँ और गायत्री के मन को आशंका कंपा गयी। किशोर भी मन-ही-मन सिहर उठा। सिलबिल ने किया क्या हैं? कारण स्पष्ट होते ही आतंक तिरोहित हो गया। माँ और गायित्नी ने छुटकारे की साँस ली। तुम्हारे नाम में क्या खराबी है? पिता ने कड़वे स्वर में पूछा। अब हर तीसरे-चौथे के नाम में शर्मा लगा होता है। मेरे क्लास में ही सात शर्मा है।...और यशोदा? घिसा-पिटा दकियानूसी नाम। उन्होंने किया कया था? सिवा क्रिश्न को पालने के? सिलविल ने पिता की ओर देखते हुए पल भर का विराम दिया फिर उपसंहार कर दिया यशोदा शर्मा नाम में कोई सुंदरता नहीं कालांतर में यह उद्गार 54 सुल्तान गंज में वैसा ही ऐतिहासिक माना गया जैसे राष्ट्रीय स्तर पर भारत छोड़ो तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा और स्वतंतता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है आदि माने गये थे । माँ की समझ में बात थोड़ी-सी ही आयी। बस इतना भलीभाँति उजागर हुआ कि मुद्दा उनके अधिकार-क्षेत्र से बाहर है। सिलबिल के बारीक़ सोच और तर्कशीलता के लिए गायित्ली के मन में उसके प्रति कौतुक-भरा स्नेह जागा तथा किशोर के मन में आदर-भरी श्रद्धा इस एक पल में दानों भाई-बहनों के मन में सिलबिल थोड़ी ऊँचाई पर प्रतिष्ठित हो गयी। 14 मुझे चाँद चाहिए




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