पातन्जल योगसूत्र | Patanjal Yogasutra

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Patanjal Yogasutra by बृजरानी देवी - Brijarani Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ पातञ्जल-योगसृत्र शब्द्जानानपाता वबस्तशन्‍्या चवक्रए। | ५ ॥ ८लार्थ -- शब्दों के ज्ञान पर ही आधार रखती शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्या विकब्पः। खत न॒प्रमाणोपारोहि । न विपययोपाराही । बस्तु- टन्यत्वेप्रपि शब्दक्षानमाहात्य्यनिबन्धनों व्यवहारा हृश्यते । तथ्था चेतन्ये पुरुपस्य स्वरूपामाति । यदा जितिरेव पुरुषस्तदा किमत्र केन व्यपरदिध्यते ? मवति च व्यपदेंश वात्तिः | यथा चेत्रस्य गोरित । तथा प्रतिषिद्धवस्तुधर्मो नाश्रियः पुरुष: । तिष्ठति वाणः स्थास्यति स्थित इति गतिनिवुतो घात्वथ- सात्रे गस्यत । तथाउल॒त्प्तिधघभा परुप इति। उत्पात्तिथमस्थाभावमात्रमवणस्यते, न पुर्पान्चयी घमः । तस्माद्कश्पितः स घमस्तेन चास्ति व्यचहार इति ॥ ९ ॥ गिफकलम-हतज-तकलनाका कर समिकाकक न वनना,.#ल-फकमपज थम मा जक कन्‍ ह 3. अल टन 3. अक जता फशना भा थे 3 ७» हुई मनोकव्पता ( विकव्प ) बस्तु से शक, ब्छ शल्य है--९, व्दों के ज्ञानपर ही आधार रखती हुई मनो- कल्पना (विकल्प ) वस्त से शन्य हैं| यह न प्रमाण ( सत्यज्ञान ) और नहीं विपयेय ( उल्टा ज्ञान ) के अन्तगत हैं (क)। वस्तु से शन्य होने पर भी शब्दज्ञान के बछ पर निर्भर करता हुआ इसका व्यवहार देखा जाता हैं | उदाहर- णाथः- पुरुष! * चेतन्य ? के स्वरूप को रखता हैं। ज़व चिति: ( सगण ब्रह्म ) ही : पुरुष ? है तब यहां किससे कौन साचित होता है? अर्थ- सुचना म॑ कुछ संबंध अवश्य ही हुआ करता हैं ( ख) जस चंत्र गाय रखता हैं | इस प्रकार, / निष्किय पुरुष ! का यह अथ हैँ कि परुष ! उस धर्म (गण) को रखता है जिसे “बस्त ? में निषेध |केया जाता है (ग)|]| यदि यह कहा जाय कि बाण (एक प्‌रुष ) हैं, रहेगा ओर था ? तो ( € होना ? ) घात का अथ * गति! का निवात्ते में ही आता हैं (घ)। इसी तरह, इस कथन से कि * पुरुष अजन्म-धर्म बाला है? यही समझना है कि “ उस? में जन्म छेना रूप, २ धरम का अमाव है (७8)| “ पुरुष? के साथ (क) प्रमाण (सत्यज्ञान ) विद्यमान वस्तु के सत्य स्वरूप को ही रखता है; विपयय ( उद्ठा ज्ञान ) भी सू.९ विद्यमान द्रव्य को उसी दिखाव के उत्टे स्वरूप में अहण करता 8३, परन्तु विकब्प ( मनोकल्पना ) के बारे मे कोई विद्यमान द्रव्य अथवा वस्तु नहीं है। केवलमात्र शब्दों पर ही निर्मर करता हुआ यह एक भात्र कल्पना के बल से कुछ नया बनाता है। आकाश-कुसस £ बन्धया-पत्र परन्तु पुरुष ” संबंध रहित है * शश-शंग ( खरगेश का सींग ) ? आदि उदाहरण यहां समझने चाहिये। (ख ) संबंध दो वस्तुओं के मध्य होता है, अतः, उन पर आरोप किया गया यह संबंध कब्पित ही है।(ग) पुरुष ? कोई गुण नहीं रखता । विषम शक्ति ( प्रधान ) में रहने वाले गणें का यह निषेध * उस * बब्ड से कहा जा सके तथाव उस मे आरोप किया जाता है | ( घ ) पुरुष ” की कोई गति नहीं हैं, परन्तु समय परिवर्त आरोपित होता है। (& ) यह्य॑प्रि * पुरुष ? का ऐसा कोई यथार्थ चबे न हे (0 श्थ न जि ५ ७ शशि पु निेवा्थंक धम आरोपित होता है |




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