भारतीय मजदूर | Bharatiy Majadur

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Bharatiy Majadur by श्री शंकरसहाय सक्सेना - Sri Shankarsahay Saksena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गावों और उद्योग घर्घो का सउच ३१ # कारण पद बीमार पद जाता टै। उस समय बह गाव और अओद्योगिक के के अम्तर को सममता है। जद्दा गाय में बीमार पढने पर उसझी चारपाड क॑ पास चार गाव के लोग चैठे रहते थे, वद्दा वह शद्र में अपनी गदी कोरी स श्रकेला पढ़ा रहता है । उस समय उस्ते अपनी भाव की चौपाल, खेत भाड़ विरादुरी की याद आठो है और बद भाग ग्यडा होता हे । यदि धामीण पइला बार की बीमारा मेल गया तो फिर बह प्रद्दा रद्द कर काम करता है। फिरि भी तब कमी झआमाण लम्बा बरामार हो चाता है श्धव्रा पर हो जाता है, या बेकार द्वो जाता द्वे तो चद् अपने गाव को याद करना है । वासारी, वम्ारा, और छुटाप को कारने के द्लिए गांद आद्योगिक केन्द्रों की श्रपद्धा उटुत हवा सुरिधा जनक स्थान हैं] यही नदीं, कारपानो का दाम भी आमाय के श्रनुकुल नदी पढता | आमीण वहुंठ सेहनता होता है, दिन्‍्तु खेता का काम ऐसा नहां होता कि जिसमें किसान को सशीन वन लाना पढे । पैकटरियों का काम भनुष्य को यप्नवत बना देता है; बडे का अनुशासन भो ग्रामीण सभदूर को बहुत ग्यक्षता है। इसका मु०्य कारण यह है कि भारतीय सपदूर अपने युयाजाक्ष में भ्रौद्योगिक के-ठ में आता है, तग्र तक वह खेती करता है। खेती और कारपानों क काम में शरहुत बड़ा अन्तर है | थद्दा कारण हू कि ग्रामोण सपदा के लिये गाव का नहीं छोड़ता, बह अस्थायां मप से हा केद्धो में रदता है । अ्रव प्रश्न यद्व है क्रि हिन्टुस्ताना मजटूर का इस विशेषता से घर्घो को छाम है या द्वानि? सच तो यह है कि इससे स्वाभ और हानि दोनो ही हूँ । जहाँ सयुकत राज्य अमेरिका या निटेग का सचदूर जो ओद्योगिक कंन्हो मे दी च-म लेता है और अपने पिता को कारखानों में जाते देखता है, उाड्ठी कारखाना में स्वय भी बडा होन पर काम क्रो की बाठ सोचता है तो यद यद्द सातने पर विदेश हाता है कि कारपानों और उसका चिर सम्बाध है। बढ़ पानता है हि उससे खदैंए दी क्ास्पानों म काम करना दे और सदा आद्योगिक कंद्रो में दी रहना है। ऐसी दशा में तिडेन




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