हिन्दी विश्वकोष | Hindi Vishav Kosh

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Hindi Vishav Kosh by नगेन्द्रनाथ बसु - Nagendranath Basu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वाकुंतत-मेकि पाररिष्य हुथ, श्वास; कुष्ठ, मेह,. इधर और छमिताशक 1 ; फछ--पित्तवेद्धोंक, कटु, कुछ, कफ झौर “चायुनाशक, फेंणका 'द्वितकर, छामि, भ्यांस, कास, शोथ, आम और पाण्डुनिवारक् | ( मावप्र० ) बाकुल ( सं० क्लो० ) चकुलस्पेदमिति घकुल ( तल्येदम | पा ११२० ) इत्यण्‌ | चफुल पल * धाकोंधावा_( सं० क्ली० ) फ्रथोपकथन, वातच्रीत चाकोबांफय ( सं० क्लो० ) १' परस्पर कथांपकथन, वात चीत | ( 01010१7९ ) २ परस्पर तक । ३ तकीबिधा। छान्दोग्योपनिषदुर्मे नारदने सनत्कुमारोंसे अपनो जिन जिन विद्याओंके ज्ञाता द्वोनेको बात कही थी, उनमें 'वाकोयाण्य' विधा भो थी। पाकलद (सं० पु० ) वाच्ा कलद्ः । धबातका रूमहा । याका (सं० स्रो०) घरकफे अनुसाए पक्र प्रकारका पक्षी! म : च्ाक्कीर ( सं० पु० ) यानि, कौतुक बाषपे कौर शुक्रग्रिय- त्वात्‌ । श्यालक, साला।._ है बापफेलि ( सं० स््री० ) चाचा केलि।। धाफ्प हांरा फेलि, बातकी क्रीड़ा। , घाषकेली ( सं० सत्नो ०,) वाककेश्षि देसे । * घाकचक्षुस्‌ ( सं० क्ली० ) धाक्य शरीर चक्षु । धाप्यचपल ( सं० पु० ) घाचा चपलछः)। १ बहुत बातें करनेबाला, बातें करनेपरें तेज, मुंहजोर। २ भड्ड- 'भड़िया। , ५ चाकूछछ ( सं० छ्लो० ) याचा छलम्‌। न्याथशाखके अन्नु- सार एफ छल | यह तोन प्रकारका द्वीता है,--धाकूछल, सामान्य छल भौर उपचार छल | ज्ञव चक्ताके साधारण _रूपसे के हुए कथनमें दुसरे पक्ष द्वारा अम्रित्र त अर्थसे अन्य जर्थफी पस्पना उसे फेचलछ चक्वरमें -डालनेके लिये की जाती हैं, तद घाकछछ कद्दा जाता है। जैसे यक्ताने / फह्दा.--“यद बालक नप कंबल है” झर्धात्‌ नये कंवछ बाला हैं। इसका भतिवादी यदि यद्द अर्थ छगाये, कि 'इस बालक पास संप्यागें नौ कंबल हैं, और फद्दे--!नौ 'पंवल छा हैं, पक ही,नो है।” तो यह घाकूछछ द्वोगा । छ्न शब्द देखा। चांषप द्वास कछद, एण, डेड्धा, 7 श्प इसका | वाकछलांधरित ( सं० त्ि० ) जो दर बातमें छलकी वात करते हैं । बाकत्वच ( सं० छवो० ) घाष्य और त्वक्‌। बाक्त्विप्‌ (सं» को०) वाड्माघुण, चाफ्यका तेज । चाक पड (सं० ल्ि०) बाचा पहु। वाककुशल, बाखी, वात करनेमें चतुर | चाकपढुता (सं० खत्री०) वाकपठु-भांवे तल दापू। चाकूपडु- का भाव या घम, वाकपदुस्व । चाकपति (सं० पु० ) घाचां पतिः1 १ बृद्स्पति। २ विष्णु । ३ अनवद्य घचन, पडु घाफ्य, निर्दोष धात 1 वाक्पतिराज्ञ ( सं० पु० ) १ प्रसिद्ध फवि दृपदेयके पुत्र | पे राजा यशोवर्माके आश्रित थे । इन्द्रोने प्राृतमें गौड़यदी ( गौड़बघ ) नामक काव्यकी रचना की है। ये भवभूतिफे समसामयिक थे। ३६माल्यक्रा एफ परमार राजा जो सीयकका पुत्र था। इस नामका एक और राजा हुआ है । घाकपतीय ( सं० क्ली० ) घाकपति-पविरखित प्रन्ध | ( तैत्ति० ब्रा० २७३१ ) चाकपत्य ( सं० छी० ) घाकपतित्व ॥ ( काठक ३७२ ) चाकपथ (सं० लि०) चाफ्यकथनोपयोगी, धात फहनैके उपयुक्त 1 चाकूपा ( सं० त्वि० ) वाकूपदु। ( ऐकरेय्रा० २२७) चाकपारुष्य ( सं० छी० ) वांचा कृत॑ पासुष्ये। अधप्रिय चाक्योच्चारण, वाफ्यक्री क्ठोरता। यह सात प्रकारके ब्यसनोंके अन्तगत धक व्यसन है। इसके लक्षण-- “देशजाविदुननादीनामाकोरन्यप्संयुतम्‌ 1 यद्दचः प्रेतियूज्ञार्थ बाक पारुथ्यं तदुच्यते ॥० लग “ ( बाशवल्थय ) 'देशादीनां माक्रोशन्यकूस' युत्त, उच्चैमपिणं आकोदः * ब्यद्रमवर्धा तड़भययुक्त' यत्यतिकूलार्थ' उद्दे गजननार्थ' चाषयं तदु॒वाकपादप्यं क्थ्यते।! ( मिताक्षारा ) _ देश, ज्ञाति और कुछशोछादिका इस्टेज करके जो निरदनोय वाक्य प्रयोग किया जाता है, उसे चाफपारध्य बद्ते हैं। जिसे ज्ञो चाक्य प्रयोग करना उचित नहीं, उस चाषयफे प्रयोग करनेसे घाकूप!स्ष्य होता है | प्रचलित




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