धरती और नींव | Dharati Aur Neevan

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Dharati Aur Neevan by जगदीश चन्द्र - Jagdish Chandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वाले चार्द मे से इस नाम को अचानक ही काट दिया था । जो आज पहली बार इधर की क्सी भी छाइन पर न तो कोई बस थी मौर न छाइनों भें लगने या आदेश पाने की प्रतीक्षा मे ही कोई बस इद्रधर थी । जबवि केंद्रीय सचिवा- लय की ओर से बसे आज भी और दिनो की तरह आ रही थी । पर उधर से ही भरवर आने वे कारण वे भी आज इधर रुक नहीं रही थी। जिसवे कारण अपने जवान यून की प्ुर्त्ती दिखाने वे शौकीत छोग चलती बसो में चढ़ने वी उतावली में इधर-उधर टहल रहे थे । मगर आज ऐसे फुर्तीके छोगी को भी मौका वम ही मिल पा रहा था। बसों के ड्राइवर यहा वी भीड-भाड से धवरावर इधर से छखिसकते बसो वो और अधिक तेज वर छे रहे ये / तभी एक्ाएक ही एवं साइविल सवार को बचाने वी मजबूरी मे एक बस कुछ धीमी क्या हुई कि आसपास की सारी भीड उसी की ओर छपकी | वस ड्राइवर 'कमीना साछा' झल्छामा। बेचारा धवराया-धबराया साइकिल सवार किनारे लगा | पर देयते-देवत सातन्आठ , आदमी शस के अदर। और बस एकाएक ही फिर रफ़्तार पर। इस सबवा नतीजा यह कि घडाम से दो आदमी जमीन पर ! मगर सौभाग्य कि गिरे दोनों व्यकित अपने-अपने कपडो पर रूगी धूल झाडने काबिछ थे । उतमे से एवं वा कोट तथा पेंट फट गया था । वह फदी-फटी आखो से फ़ठे कपडो वो बुछ ऐसे देख रहा था जैसे उसे अपनी जाव बचने की खुशी को अपेक्षा वषदों बे' फटने वा अधिव दुख हो । छाइतों मे खडे छोग भी सहानुभूति की नजरों से उसे ही देख रहे थे । कुछ ऐसे जैसे अपने बावूगिरी के तजुर्बों से वे यह भाष चुने हो कि यह भी उन सच्चे बाबुओ में से ही होगा जिनके प्रास बदलने तक को कपड़े नही हुआ करते हैं । अब लाइन मे खड़े लोग वावूगिरी वी वार्ते करने में जुद गए थे । एक बाबू ने चर्चा यह कहकर छेड़ी कि अफसोस तो यह है हममे से एक भी किसी मिनिस्टर या सेक्रेटरी वा साला नही हुआ करता है। “साले से आपका मतलब गाली से है या श्रीमती वे भाई से 1” यह दूसरे बावूजी की चुहलवाजी भरा स्वर था। “तुम भी यार अजीब हो | ये लोग कोई हममे से थोडे ही हुआ बरते हैं। इनकी तो जात ही वुछ और हुआ करती है।” यह मेरे से पहले खडे व्यक्ति का स्वर था । अब अगल बगल ने सारे लोग हस पडे थे । मैं भी भला अपनी हसी गंसे रोक पाता। मगर इनकी बातो ने मुझे गर्ग साहब की याद ताजा वरा दी । उनवे घर मुर्ये मेरा दोस्त सूद प्रमोशन की पार्टो खिलाने छे गया था। तब उन्हे मैंने पहले-पहल देखा था। उनवे आग वे सारे दात नहीं थे । सिर बा एवं भी वाल काला नही था। पर प्रमोशन को खुशी ऐसी थी वि उनके घरती और नीव ११५




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