गिनीपिग | Gineepig

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Gineepig by मोहित चटर्जी - Mohit Chatarji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लड़की : पहला : लड़की : पहला लड़की : पहला ; लड़की : पहला पहला लड़की पहला : लड़की : पहला : लड़की : तुमने मुझे नही बुलाया । इस दुनिया मे मैंने तुम्हें नही बुलाया 1 नही बुलाया तो अच्छा किया । फिर भी हम एक-दूसरे से मिलेंगे, साथ रहेगे, प्यार करेंगे, जो मर्जी होगी वही करेंगे। देखो, ये सब फ़िलासफी अलग रखो ...वहुत सुन लिया .. तुमने चाहा नही था फिर भी तुम्हारा जन्म हुआ, ...तुमने चाहा नहीं फिर भी मरना होगा ...इन सब बातों पर बहस करना छोड़ कर...हम है...बहुत दिन जियेंगे...कोशिश करके अच्छी तरह से जियेंगे.. यही बहुत बड़ा सत्य है...समझे ? : अच्छी तरह से जियेंगे ! कौन दे रहा है जीने ? लड़की : पहला : कौन नही दे रहा है ? कौन नही दे रहा, यह तुम भी जानती हो, मैं भी जानता हूँ ...ढोंग 'रचने की कोई ज़रूरत नही । तुमसे मैंने हजार वार कहा है कि इस शब्द का इस्तेमाल न किया करो। अच्छी भाषा बोलने में क्‍या पैसे लगते हैं ? बहुत दिन पैसे नही होते तो अच्छी भाषा का टेस्ट भी नहीं रहता । पैसा तो मेरे पास भी नहीं है । : कहीं न कही तुम्हारा भी ठेस्ट बिगड़ा ही है। लड़की : पहला : लड़की : पहला : लड़की : पहला : लड़की : क्या तुम सीरियसली विश्वास के साथ यह कह रहे हो ? तुम कौन दुनिया से अलग हो जो तुम्हारे लिए ऐसा नही सोचूंगा ? प्रमाण दे सकते हो ? हाँ दे सकता हूँ, पर रहने दो यह सव । नही, रहने नहीं दिया जायेगा । फिर मैं नही कहूंगा। तुमको कहना ही पड़ेगा । : पड़ेगा ? क्‍यों ? : कुछ बातें ही ऐसी होती हैं जितको शुरू करके खत्म न करना बद- तमीद्ी मानी जाती है। मैंने क्या बुरे टेस्ट का काम किया है, तुम्हें बताना ही पड़ेगा । तुम राजा साहव को देख कर मोहित हो गयी थी। तुम नही हुए थे ? हुआ था, पर उसके साथ-साथ एक और इच्छा थी, एक और संकल्प जाग उठा था मन में । पर तुम्हारी तरह अपने को छुटा नही दिया था। लड़की हँसती है। ४ लुटाया नहीं ? पिछले कुछ वर्षों से जाने कहाँ से एक छुरा से आये गिनीपिय : २७




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