मैं भूल न सकू | Main Bhul Na Saku

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Main Bhul Na Saku by जयन्त - Jayant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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में भूल न सक महल ध्वीर अज्ञु न' के सम्पादक 'धीयुत जयन्त जी फी आश्या है कि में अपने जीवन की फोई ऐसी बात लिख दू जिसे में अग्तक भूल न सका होऊ । परन्तु यदि यही चात होती तो उसका लिख देना उतता फठिन न था | में एक पक्ति में लिस देता कि जब में सात यर्प का था तथ मैं अपने साथियों से गया क्री कसमो खाना सीख गया था । एक दिन मैने अपनी मा के सामने “गया फी कूसम कद दी । सत्तय एक तमाया लगा और साथ ही यह डांट कि फिर कमी फोई कसम साई तो ठोक तरद्द दुरुस्त कर दू गी । श्रोर आज तक मुझे बढ़ समाचा याद है, क्याँकि मेने फिर कमी कोई कसम नहीं पाई । चस, इतना लिप फर चुट्टी पा जाता। परन्तु नहीं, इतनी ही वात पहीं है । उस बात की झाड में भ्ली जयन्त जी कुछ और चादने दे । थे चादते दें कि वद याद भो मार की दो, साथ द्वी बद्द लिखी भी पेसे दग से जाय कि उसमें “रसा प्ल्ल्द [ *६ )




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