मन के वन में | Man Ke Wan Men

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Book Image : मन के वन में  - Man Ke Wan Men

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जन्म- ११ मार्च १९३४ को बिहार में सारण जिले के अंतर्गत दिधवारा अंचल का एक गाँव- हराजी।

शिक्षा- मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि।

कार्यक्षेत्र- पहली कहानी कल्पना में छपी। पाँचवें दशक के प्रारंभ से उपन्यासों का प्रकाशनारंभ। सन 1949 में प्रसिद्ध रेडियो नाटक उमर खैयाम का आकाशवाणी द्वारा राष्ट्रीय प्रसारण।

प्रकाशित कृतियाँ-
उपन्यास- लोहे के पंख, नदी फिर बह चली, भित्तिचित्र की मयूरी, मन के वन में, दो आँखों की झील, कुहासे में जलती धूपबत्ती, रिहर्सल, परागतृष्णा, शोकसभा, प्रियाद्रोही, पुरुष और महापुरुष, पूरा अधूरा पुरुष, पैदल और कुहासा, नई सुबह की धूप, इशारा, न खुदा न सनम आदि ३६ उपन्यास।
कहानी संग्रह- ज

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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501: 1:22 33: 5: घर के भीतर चली गईं। इस कमरे में आकर मैंने देखा, रोज की तरह आधे कमरे में पुआल बिछी थी । बीच में थोड़ी जगह छूट गई थी और परली तरफ चारपाई थी । मैं चलकर चरपाई के एक कोने पर बँठ रहा। 'सम्बा-सा एकान्‍्त कमरा। दरवाज़े खुले हुए थे और वाहर से हल्की हवा के झोके भीतर घुसपैठ कर रहे थे। यों तो जीजी के घर के किसी भी कमरे में में आ-जा लेता था, मेरे लिए कोई मनाही नहीं थी, मगर यह कमरा भेरे लिए एक खासियत रखता था । इसे कंसे भूल जाऊ कि उसी कमरे में जीजो और मे--दोनों मिलकर आपस में तरह-तरह की मंत्रणा किया करते थे। वे अपने को लेकर, मगर मुझे लेकर ऐसी-ऐसी कल्पनाएं किया करती थी कि मे तात्कालिक दुःखों और अपमानजनक जीवन को तब तक के लिए भूल जाया करता था, जब तक मेरी अगली पिटायी नहीं होती थी । कुछ ही मिनटों में जीजी लौटी, तो उनके बाए हाथ में अखबार के टुकड़े में लिपटी तीन-चार गुझ्िया थी। उन्होंने चारपाई पर उन्हें फैलाते हुए बहा, ' देखो, चार गुझिया हैं। तोन तुम्हारे लिए और एक मेरे लिए।” “कण जीजी, हम दो-दो बयो न खाए ? ” जीजी बोली, “दो तो तुम्हारे हैं ही, एक वडी बहन की ओर से छोदे भाई को मेंट ! ! में गुझिया खाने लगा। जीजी की आदत बहुत धीरे-धीरे खाने की थी उन्होंने अपनी ग्रुझिया का थोडा-सां भाग काट कर अपने मुह में डाल लिया और चरपाई पर बैठ गईं। अब में भी एक तरह से फांदकर उनकी बगल मे बैठा रहा। जीजी ने मुझसे कहा, “कोई पूछे कि तुमने कितनी गुन्षियां खाई, तो कह देवा एक । समझे २” * हां, समझा | एक कह दूगा।” अब जीजी ने पूछा, “आज तुम्हारी पिटायी किसने की ? चाघा ने या घाची ने ? ” मैंने सच्ची बात बतलायी, “विताजी ने 7” “किस बात पर 2” मैं बोला, “मैंते पन्‍ना को नहीं पकड़ा, इसीलिए । पन्‍्ना मेरा डेढ़ साल का सौतेला शनान शा 1 एता नहें




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