यशस्तिलकचंपूमहाकाव्यम | Yashastilakchampumahakabyam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
41 MB
कुल पष्ठ :
476
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २२ )
देखकर सौम्य प्रकृतिवाले श्री मुन्दरलालन्ी शास्त्री द्वारा प्रन्थ का अर्थ विशेषरूप से बर्शन करने में तत्पर
ष भावाये प्रकट करनेवाली भाषा टीका की गई है, जिस टीका की सममाने की कछा देखकर हमारे चित्त में
मद्दान् द॒पे हो रहा है ॥ २॥।
इस काये संबंधी महान परिश्रम ब टीकाकार की विद्वत्ता देखकर एबं जन-समूह का उपकार
करनेवाली, ललित, सद्दी अर्थ प्रकट करनेवाली, नवीन, सर्बजनसमूह को प्रिय ब गुणयुक्त भाषा टीका देखकर
भी० सुन्द्रलालजी शास्त्री विद्वानों में निपण हैं और हम सरीखे विद्वानों द्वारा सुयोग्य विद्वान माने
गए हैं॥ ३॥
हमारी यह समीचीन व निश्चित मान्यता है कि यह भाषा टीका इसके अध्ययन करने में अनुराग
का में निभित्त होगी तथा बाद-बिवाद करनेबालों या बक्तृत्वकला सीखनेबालों का सदा द्ढ़
उपकार करेगी।॥ ४॥
बिनीतः
रणनीतसिंहमिश्रः
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