नीति वाक्यामृत | Niti Vakyamrit

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Niti Vakyamrit by सुन्दरलाल शास्त्री - Sundarlal Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ४: ११-प्ुरोहित-समुद्देश २१०-२२१ पुरोद्दित ( राज-गुरु ) का लक्षण या गुण, मंत्री-पुरोहितके प्रति राजन्कर्तं व्य, 'प्रापत्तियोंका स्वरूप व भेद, राजपुत्रकी शिक्षा, गुरु-सेवाके साधन, विनय, 'श्यौर विद्याम्यासका फल, शिप्य- कतेंठय, माता-पितासे प्रतियूलवर्ती पुत्रकी कड़ी 'मालोचना, पुच्रक्तव्य, शुरु, शुरुपसनी, शुरुपुन्र छौर सददपाठोके प्रति शिप्यका चर्ताव, शिप्य-क्तब्य, 'मतिथियोंसे शुप्त रखने योग्य वात, परयृद्ममें प्रचिष्ट हुए पुरुपोंकी श्रयृत्ति, मद्दापुरुपफा लक्षण दूसरोंके कार्य साघनमें लोक-प्रकृति, राज कमेंचारीकी प्रकृति, घनिक कृपरणोकि गुण-गानसे नि २१८-२१७ राज-कम चारियोंमें पक्षपात-शुन्य समदप्टि, दरिद्रसे घन श्रहण, श्रसमर्थसे श्वपना प्रयोजन कहना, दृठी, फतंब्य-ज्ञान-शून्य व विचार-शुन्यको नेतिक उपदेश देने श्र नीचके उपकार करनेकी निरथकता, मृखंको सममानेमें परिश्रम करने, पीठ पीछे उपकार करने शोर घिना मीकेकी वात कद्दनेकी निप्फलता, उपकारकों श्रकट करनेसे हानि, उपकार करनेमें समथ पुरुपकों प्रसन्न करना, गुण दोपका निश्चय किये थिना 'नुम्रहद व निप्रदध॒ करना-झादिकी निप्फलता, झूठी बढा- दुरी बताने वालॉंकी 'झोर क़ृपणक्ते घनकी कड़ी श्ालोचना एवं उदारकी प्रशसा; ईष्यालु गुरु, पिता, मित्र, तथा स्वामीकी कड़ी 'मालोचना २१८-९९१ १२ सेनापति-समुद्देश-- २२२-२२३ ( सेनापतिके गुण-दोप-आादि ) १३ दत-समुदूदेश-- २२४-२३० दतका लक्षण, गुण, भेद, दृत-कतन्य, निरथक विलम्चसे हानि, दुतोंसे सुरक्षा सदप्टान्त शत्र द्वारा मेंजे हुए. लेख छोर उपदारके विपयमें राजकतंव्य सचप्टान्त, दूतके प्रति राज्ञाका वतांव, दृत-लक्षण एवं उसके वचनोंको सुनना, शत्रुका रददर्य जाननेके लिये दूतके प्रति राजाका कफतंव्य एवं शात्र -भूत राजाके पास भेजे हुए लेंखके विपयमें विजिगीपका कतव्य १४ चार-सपुददेश २३१-२३६ गुप्तचरोंका लक्षण, गुण, वेतन व फल, उनके वचनों पर विश्वास, शुप्तचर-रद्दितिकी दानि सदप्टान्त, गुप्तचरोंक़े सेद और लक्षण. १५ विचार-समुदूदेश .. २३६-२४९१ विचार पूर्वक, कतेव्यमें प्रदत्ति विचार व प्रत्यक्षका लक्षण, ज्ञान मात्रसे प्रचति-निवृति न - करना, विचारकज्ञका लक्षण, विना विचारे काय करनेसे हानि, राज्य, प्राप्तिके चिन्ह, श्नुमानका लक्तण-फल, भवितर्व्यता . प्रदेश क. चिन्दु, वुद्धिका झछसर, आगम व आप्तका स्वरूप, निरथ क वाणी बचनोंकी मददत्ता,' छूंपशुके घनकी,कट्ठ आलोचना 'झौर जन साघारणकी प्रवृत्ति १६ व्यसन-सप्ठतद्देश॑. २४२-२४८ व्यसनका लक्षण, भेद, सहज व्यसनोंसे निवृत्तिका पाय, शिष्ट पुरुपका लक्षण? कछन्निम व्यसनोंसे निवृत्ति,. निंजस्त्रीमें, 'झासक्ति, मद्यपान, संगया, दूत और पैशुन्य-आदि १८ प्रकारके व्यखनाका स्वखूप व द्वानि ।




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