यशस्तिलकचंपूमहाकाव्यम | Yashastilakchampumahakabyam

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Yashastilakchampumahakabyam by सुन्दरलाल शास्त्री - Sundarlal Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २२ ) देखकर सौम्य प्रकृतिवाले श्री मुन्दरलालन्ी शास्त्री द्वारा प्रन्थ का अर्थ विशेषरूप से बर्शन करने में तत्पर ष भावाये प्रकट करनेवाली भाषा टीका की गई है, जिस टीका की सममाने की कछा देखकर हमारे चित्त में मद्दान्‌ द॒पे हो रहा है ॥ २॥। इस काये संबंधी महान परिश्रम ब टीकाकार की विद्वत्ता देखकर एबं जन-समूह का उपकार करनेवाली, ललित, सद्दी अर्थ प्रकट करनेवाली, नवीन, सर्बजनसमूह को प्रिय ब गुणयुक्त भाषा टीका देखकर भी० सुन्द्रलालजी शास्त्री विद्वानों में निपण हैं और हम सरीखे विद्वानों द्वारा सुयोग्य विद्वान माने गए हैं॥ ३॥ हमारी यह समीचीन व निश्चित मान्यता है कि यह भाषा टीका इसके अध्ययन करने में अनुराग का में निभित्त होगी तथा बाद-बिवाद करनेबालों या बक्तृत्वकला सीखनेबालों का सदा द्ढ़ उपकार करेगी।॥ ४॥ बिनीतः रणनीतसिंहमिश्रः




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