पर्यावरण और हम | Paryavaran Aur Ham

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Paryavaran Aur Ham by विजय अग्रवाल - Vijay Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज्यो ज्यो हम बुद्धिमान होते गये हमने प्रकृति पर अनाधिकार रूप से जुल्म ढाने शुरू किये। प्राकृतिक सतुलन की बिग्रांडने की जिम्मेदारी से हम इकार नही कर सकते । हमने वायुमडल मे बेतहाशा कार्बन डाई आवसाइड भ्र दिया और इस तरह खुद अपने लिए विष घोला। *$. कार्बन डाई आवसाइड अन्य गसो से अपेक्षाकृत भारी द्वोती है और इस कारण उसने वायुमडल के निचले हिस्से मे एक परत' सी बना ली। यही परत पृथ्वी का तापक्रम बढाने की वजह है । हे जैसा कि हम जानते हैं, सूये की ऊर्जा पृथ्वी को प्राप्त होती रहती है। सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को पृथ्वी उत्सजित करती है या बाहर निकालती है लेकिन कार्बन डाई आक्साइड की पर इस ऊर्जा को सोखती जाती है तथा उसे वायुमडल के बाहर निकलने नहीं देती । / पृथ्वी द्वारा उत्सजित यह इफ्रारेड रेडियिशन जिसे गैसीय परत सोख लेती हैं तथा वायुमडल के निचले हिस्से का तापक्रम बढा देती है । कार्बन डाई आक्साइड द्वारा इस प्रकार ऊर्जा का शोषण कर उसे उत्सजित न करता पौध घर प्रभाव या ग्रीन हाउस इफेबट कह साता है । कार्बन डाई आक्साइड के माध्यम से पृथ्वी का तापक्रम बढाने मे मुख्य रूप से उद्योग घधे तथा आटोमोबाइल उद्योग ही जिम्मेदार हैं । सामान्य तौर पर औद्योगिक तयरो का तापमान आसपास के स्थानों से २ से ३ डिग्री सेल्सियस तृक अधिक होता है। इसका कारण इन ओद्योगिक नगरो द्वारा कारखानो से कार्बन डाई आक्साइड को वाता वरण मे मिलाना ही है । न एक अध्ययन के अनुसार औसत रूप से एक व्यक्ति प्रति दिन चार सो लीटर कार्बन डाई आवप्ताइड शवसन क्रिया द्वारा बाहर निकालता है । इस तरह समस्त भूमडल कार्बेन डाई आकस्ताइड से भर सकता था यदि पृथ्वी पर वनस्पतियाँ न होती । सुश्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ० बेकर ++२१--




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