अस्तंगता | Astangata
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
342
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देखा । बढ़े हुए हाय से गोछों छो। उसी को थर्मत प्रछास्क की कैप से
दो घूँट पानो भी लिया और फिर पूर्ववत् स्थिति में हो गया ।
उम महिला ने सिगरेट जला ली थी। उस ने घुएँ का घूँठ भरा।
फिर उसे बाहर फेंका और पूछा, “स्मोक करता है ? सिगरेट छेगा ?”
मैं ने कहा, “नहीं।”
बह बोली, “ओ. तव तो हमारा धुआँ गड़बड़ करेगा । और हम
बोलता है तुम फिकिर मत करो । थोड़ी देर में सब ठोक हो जायेगा ।
फिर तुम थोड़ा खा भी लेना । खाली पेट मत रहवा। हम बोलता हूँ
ज़्यादा खाना, न खाता गड़वड़ करता हैं ।”
उन टूटे-फूदे वावयों का संग्रीत एबोमित को गोली से अधिक छाम
कर रहा था। मैं अधिक स्पष्टता से उध का मुख नही देख पाया था ।
पर जो छाया ग्रहण कर पाया था बह सुन्दर थी, झीतछ थी, सुखद थी ।
उस्र की आयु का अनुमान भो सुन्दरता, झीतलता और सुख की अनु»
भूतियों से प्रभावित ही तरल सा ही वना रहा और उस तरलता में जो
चित्र उमरे उन के आकर्षण में आयु निरपेक्ष हो उठी थो ।
चक्करों का आना अब एक हलके नशे में बदल चला था। कुछ ऐसा
कि सर्वया अक्राम्य नहीं। कही भीतर ही भीतर स्फूर्ति जन्म ले रहो थी।
पता नही एयोमिन का असर या या कि दिक्आ्नान्त मन को एक स्नेहालोक
सा मिलता जान पड्ठा। अब मुझे रूग रहा था कि उस भोीड में मैं
अक्ैा नही । मेरा सिर उस के बिस्तर में सुसस्थाव बना चुका था ।
मेरे बालो को कोई स्पर्श हलके से छू जाता: कभी उस की उपचार
भरी आेंगुलियाँ तो कमी पारर्व । हर स्पर्श सुवास को तरह उस के अंगों
से उड़ता सा आता ओर मुझ में मुस्त को वासना भर जाता 1
मैं उस तद्दा में केवल उसी के बारे में खोच रहा था । कमी मन
अस्तंगता है
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