सोहन काव्य - कथा मंजरी भाग - 7 | Sohan Kavya Katha Manjari Bhag - 7

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Sohan Kavya Katha Manjari Bhag - 7  by सोहनलाल जी - Sohanlal Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गांव में हर घर के माँही, मिटाऊँ फऋगड़े मैं जाई। करू कया अपने घर माँही, देख रहा झगड़ा मैं यहाँ ही । दोहा--लाल कहे दादा सुनो, जब तक सजा न पाय। तब तक उसका बढ़े हौोंसला, सहा यह कैसे जाय ।। बढ़ेगी उसमें णैतानी ।1। सुधा ० 11 २९ ॥। बाल है तेरा ही भाई, गलती हो देवों समभाई। लाल कहे समभू नहीं भाई, भरी है उसमें खोटाई । नारी के पीछे कहे ऐसी मुख से बात। ऋर कम उसका है ऐसा कैसे मान्‌' भ्रात ॥। प्रापस में हुई खेंचातानी ॥| सुधा० ॥। ३० ॥। बात यह सुनी सभी नर नार, . सेठ के घर हो रही तकरार । लाल कहे सम्भालो घर बार, नार के पीछे यह क्‍यों राड । दोहा--एक एक कर श्रा रहे शने: शर्तें: नर नार। पिता देख यों सोचे मन में ऐसी करू इस वार 1। बात सब रह जावे छाती ।| सुधा० ।1 ३१ ।। नहीं तो लोग हँसें हर बार, कहेंगे घर का करो सुधार। पराई मेटो श्राप तकरार, प्रतिष्ठा होगी मेरी छार। दोहा-पिता कहे सुन लाल तू, गुनाह किया जो बाल । बड़ा होय माफी कर देना, सुधर जाय सब हाल ॥। . लाल ने एक नहीं मानी ॥ सुधा० ॥| ३२ || लाल कहे रहूं न इसके साथ, कहूं मैं प्रपती सच्ची बात । क्रता इसकी सही न जात, बात की हद हो गई है तात ।॥। दोहा-पिता कहे सुन लाल तू मूरख पर यों रोष । बुद्धिमान को शोभे नांहीं तज दो उसके दोष ।॥। “ बात लो मेरी यह मानी ॥ सुधा० 11 ३३ || पिताजी सुन लो निर्णय श्राज, सभी चाहें विगड़े सुधरें काज । भ्राये सिर मेरे बुराई ताज, जगत में जावे मेरी लाज । दोहा-पर प्रव इसके साथ मैं, रहूं न घर के मांय यदि प्रापको बालू प्यारा, जुदा करो मुझ ताँय ॥। ला कहूं मैं चोड़े, नहीं छानी ॥ सुधा० 1 ३ >) १७




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