अपश्चिम तीर्थकर महावीर भाग - 2 | Apashchim Thirthakar Mahaveer Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
312
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अपशिचम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 17
12. बालु-ये नारकों को गर्म रेत में चूने की तरह भुनते हैं।
13. वैतरणी-ये मांस, रुधिर, पीव वाली, पिघले ताॉँबे और शीशे आदि उष्ण
पदार्थों से उबलती-उफनती वैतरणी नदी में नारकों को फेंक देते हैं
* और उन्हें उस नदी में तैरने के लिए विवश करते हैं।
14. खरस्वर-ये तीक्ष्ण काँटों वाले शाल्मली वृक्ष पर नारकों को चढ़ाकर
उन्हें इधर-उधर खींचते हैं।
15. महाघोष-घोर यातना से बचने के लिए इधर-उधर भागते नारकों को
बाड़े में बंद कर देते हैं|
कितना दुःसह दुःख नारक जीवों को मिलता है| परमाधामी देव कभी उन्हें
तेल के कडाह में तलते, हैं तो कभी रोटी जैसे सेकते हैं तो कभी पशु की तरह
घसीटते हैं, लेकिन वहाँ कोई उनको बचाने में समर्थ नहीं होता |
जिन पारिवारिकजनों के लिए मनुष्य हिंसा करता है, वे पारिवारिकजन
वहाँ एक क्षण भी उन्हें शांति नहीं पहुँचा सकते ।
नरक की घोर वेदना से हताहत हुआ वह नैरयिक भयंकर रुदन करता
हुआ चिल्लाता है। हे स्वामिन ! हे भ्राता ! हे बाप ! हे तात !. मैं मर रहा हूँ। मैं
दुर्बल हूँ। मैं व्याधि से पीड़ित हूँ | मुझे ऐसा दारुण दुःख मत दो | मुझे छोड़ दो |
थोड़ा-सा विश्राम लेने दो | मैं प्यास से मर रहा हूँ। मुझे थोड़ा-सा पानी दे दो।
लेकिन, हा.......... हा........... कोई रखवाला नहीं |
उन्हें पानी की जगह उबलता गर्म शीशा पिलाते हैं। वे क्रन्दन करते हैं,
रोते हैं तो नरकपाल* कुपित होकर उनंको धमकाते हैं और चिल्लाते हैं-इसे
पकड़ो, मारो, छेदो, भेदो, चमड़ी उघेड़ो, नाक-कान काटो........... | ह
कितनी दुःसह वेदना पलल््योपम» और सागरोपम -ततक भोगते हैं और कई
जीव मरकर तिर्यच योनियों में पैदा होते हैं। वहाँ भी उन्हें दारुण कष्टों का
सामना करना पड़ता है। वे पराधीन बने दुःख सहते हैं। गायादि के दूध नहीं
देने पर घर से बाहर निकाल देते हैं। कत्लखान्नों में बेच देते हैं, जहाँ पर उनकी
निर्ममतापूर्वक हत्या की जाती है।
कई पुण्यहीन प्राणी नरक से निकलकर मनुष्य जन्म प्राप्त करते हैं, लेकिन
(क) नरकपाल-नर॒क की रक्षा करने वाला, परमाधामी
ख) पलयोपम-चार कोस के कुएँ को युगलिकों के बाल से ठउसाठस भरने पर, 100 वर्ष से एक
बाल निकालने 'पर जितने समय में वह कुआँ खाली हो, वह एक पल्योपम होता है।
(ग) सागरोपम-दस कोटाकोटि पल््योपम को इतने से ही गुणा करने पर एक सागरोपम होता है।
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