स्वाध्याय - सुमन | Swadhyay - Suman

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Swadhyay - Suman by उमराव कुंवरजी - Umrav Kunvarji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी पद्य : अन्वयार्थ | आदिनाथ स्तोन | स्तोत्र भक्तामर स्तोत्र भक्तामर-प्रणत-मौलिमणि- प्र भाणा-- मुद्दचोतत दलित-पाप-तमो-वितानम्‌। सम्यक्प्रणम्य जिन-पाद-युगं युगादा-- वालम्बनं भवजले पत्ता जनानाम्‌॥१॥ है भक्त-देव नत मौलिमणि-प्रभा के, उद्योतकारक, विनाशक पाप के है। आधार जो भव-पयोधि पडे जनों के, अच्छी तरा नमि उन्ही प्रभु के पदो को ॥१॥ भक्त -- भक्तिमान्‌ अमर -- देवो के प्रणत -- नम्रीभूत मौलि -- मुकुटों के मणि-- मणियों को प्रभाणाम्‌ -- प्रभा को उद्योतकम्‌ -- प्रकाशित करने वाले पाप-- पापरूप तमो-- अन्धकार के वितानम्‌ -- विस्तार को दलित -- नष्ट करने वाले




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