ग्रहलाघवम् | Grahalaghavam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घिककारः १ | सान्वयभाषा्दीकासमेंत । ( १३) अहर्गणात्यन्नचन्द्रोद्ध ५1 १९1११ 1 ४३ में घटाया तद ४1२७1२१1 ४३ हुआ इसमें क्षेपकाइ ५1 १७ ॥ ३३.] ० जोड़े तच १० | १४। धृष्ठा उ5पदह चन्द्रीच्च हुआ ॥ 9९2, अब मध्यम राहुके लानेकी रीति लिखते हँ- सजा राह दर वाहदधादात्फलठूदव॒कालकदय स्यादगु ॥ ११४७ जा * अन्वय+-नवक्ुमि: इपुवेट३ द्विया; घससंबात, आपात: फललव- कलिकेक्यम्‌, चक्रग्रद्ध) अग॒ु३, स्यात्‌ ॥ ११ ॥ >अहगेणको दा स्थानम छख, एक स्थानम उन्नासका भाग देय जो 'छात्धि हाय उसको अंश्ांदि माने । फ़िर -दूखरे स्थानमे छिखे हुए अहेग- णम् ४५ पताछासका भाग दय जा टामन्थद्ा -डसका कछाद मान- इन दोना छाब्पियाकी जोड़ छेय तब जा अइडः दा उनको चक्र काहेये २२ बारद शांशे- में घटाये जे। ओेष रहे उसको अहर्गुशोत्पन्न राहु जाने । तदनन्तर ऊपरोक्त शतिके अठुसार राहु साथ ॥ ११1 उदाहरण. ख् अदहगगंणकों १८२१। १०२१ दो स्थानमें .छिखा एक स्थानम २९ का भागदि- या ती ८० अं० ३ क० ९ विकला यह अंशादि.रूब्धि हुई । फिर दूसरे स्थानमें टिखे हुए अदर्गेणम ४५ का भाग दिया तब ३३ कला .४८ विकन्दा यह कछादि रूब्धिहुई | इनदोनों - छृश्धियों 51 ६१1 ४५ 1 ४४ की जोड़ा तब ८० अर. ३६ वा. ५७ थि, हुआ इसको १३ या्िमं घटाया तब शेपरद्दे९ । ५ । २६३ 1३ यही अहर्गणोत्पनच्न राहु हुआ । इसमे प्वाक्तरीतिसे राहुके घुच#ं २ । ५० 1 ० को चक्र ८ से झुणाकश तव ८1२२। ४०॥ ० हुए इसकी घढांया तव ० । १६ ४३॥। ३ ओोपरदे इसमें राहुके स्षेपकाझ ०1 २७।॥ ३८। ० को जोड़ा तब २1 १४॥। २१ ॥ | यह राहु हुआ अदगणात्वन्न राहुम राहुरा ध्रुदानक्षपद्ध एम- छानेसेभी यद राहु आताह ॥ डे अब मध्यम मइलडलानेकी रीति छिख़तेहं- दिग्भ्ा ड्रधादनगणाकछ्ाभाद्वशलभक्तस्फलाश- कृकलाबेवरे कुजः स्थात्‌ ॥ 551 अन्वयः-दिरग्प्ः, दिनगणः; डिथा; अंकझाने: चिशेल3, भक्त) ( काप्येः » तद+ फर्ांशककलाबिवरम: कुजः ( स्याद्‌ )॥ 5 ॥




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