मालविकाग्निमित्र | Malavikagnimitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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23 के साथ गृप्त प्रेम रखना नहीं चाहता था। वह तो उसे अपनी रानी बनाना चाहता था । मालविका के चरित्र में भी कोई आपत्तिजनक वात नहीं पायी गयी हैं और न ही धारिणी तथा इरावती के चरित्र में । हाँ, इतना अवध्य है कि मालविकारिनिमित्र में प्रेम शुद्ध न होकर कामवासना पर आधारित है। कालि- दास की यह प्रेम-भावना विक्रमोव शीय में कम है और अभिन्नानशञ्ाकुन्तल में तो इसका पूर्ण अभाव है । इसके अतिरिक्त शैली आदि के आधार पर भी हम इसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि प्रस्तुत नाटक कालिदास का ही है। ऐसे तो प्रत्येक लेखक की स्वतः निश्चित शैली होतो है। उसके कुछ प्रिय भाग होते हैं, कुछ शब्दों एवम्‌ उतक्तियों के प्रयोगों को वह अधिक अच्छा समझता है । ये सब उसके व्यक्तिगत गुण होते हैं. जो उसकी. प्रत्येक रचना में प्रकट हुए विना नहीं रहते, चाहे वह रखता उसके साहित्यिक जीवन की प्रारम्भिक अवस्था की हो या अपरिपक्व अवस्था हो । स्वर्गीय पण्डित ने तीनों रचनाओं में कुछ ऐसी समानताएँ विद्वानों के सामने रखी हैं, जिनके आधार पर कोई मालविकास्तिमित्र को अभिज्ञान- शाकुन्तल के रचयिता कालिदास की कृति मानने से इनकार नहीं कर सकता । तीनों रचनाओं में जो शब्द समानार्थ में प्रयुक्त हुए हैं, उनमें से कुछ निम्तलिखित हैं--उपचार, पुरोभागिन्‌ू, परिच्छेद अत्याहित, पर्युत्सुक, दुर्जात, विभावय, लव्धक्षण, अनात्मज्ञ और स्वर॒योग । विशेष शब्द का विशिष्ट रूप में प्रयोग--जैसे आइकृतिविशेष, शिलाविशेष आदि | एक ही वाक्य में दो नकारों का प्रयोग यथा - नच वो न विदितम्‌, संपत्स्यते न खलु गोसरि नाग्निमित्रे । इसके अतिरिक्त तीनों में कामदेव को विश्वास का पात्र तथा: घोखेबाज भी कहा गया है, मृग को हटाने के वहाने पात्रों का रंगमंच से चला जाना, मकान की छतों पर कवूतरों का वठा होता दिखाना, अंगुलियों की तुला पत्रों से करनी आदि वातें नाठकों में समान हैं। यही नहीं, तीनों नाटकों में आर्योा उन्‍्द की प्रधानता हैं । प्रस्तावता सभी की संक्षिप्त है ।




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