श्रीजानकीकृपाभाष्यस्य संक्षिप्तसार : | Shreejankikripabhashyasy Sankshiptsaar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ ) इसी आनन्दमाष्पको मूछते उल्ह पलटा पर इधर उधर कर विसी- ने इस ग्रन्थकन्था को तैयार किया है जिसम टुयचचीपर भरे पडे हैं | पण्टित श्री रघुपरदासजान यह 1छखक्र पडा भारी पात्र क्या हैं।जस अन्य क ल्यि यह लिखते हैं कि “मने देखा नहा है” उस ग्न्यक पिपयम अनवलोक्ति अन्थकः विषय में ऐसा अनगेल सम्माव दना यद्य मारी अन्याय्य कार्य है। मुझे अच्छा यही लगा कि भ उनऊ नामयो जाउित रहन दू आर इस कह्पित आजन्दभाष्यकों यमराचर हयाले कर दू। अत सशितक्ता का नाम उनका ही रहने ।या है। इसस उनका मोल हो जायगा | उनके अशम्य पाप का थायाश्चच हो जायगा । पण्डित श्रा रघुपरदासजी ने, जमा कि म॑ने ऊपर लिएा है चतु यत्रा के जानकीभाष्यम तुम्बाफर यहुत झिया है। मन उसे सुधार फर श्रो जानज्माष्यक्ध तरस ही यहाँ रखा है| एयम कामाच्च नाजुमसानापेक्षा ११११९] इस सूत़रु भाष्यरोमी उन्होंद प्रगाडा है, उसे भी मने जानकीभाप्य र अनुगुत ही रखा है। भूत ता बह कि जो सिरपर चढ़कर थोछे | पण्डित आ्रघुपसटासजा- ने कात्यत आनन्दमाप्यमें हामाच नाइुसानापेक्षा ॥ १।१।१९॥) इस सूत्र के भाष्य स-- “ये सनुमीयत इत्नतुमानमसुमानगम्य प्रधान तस्य नापेक्षा परसात्मम आनन्मयस्य जगत्समपेक्षा नासखीत्यथे | कुत १ कामात्‌ | सोडक्ामयत बहुत्यासित्यारभ्येद सर्वेमसततत्यादी फ्ाममात्रेण जगत्सृष्टिश्वणादित्याहु ” इतना पाठ उद्धत करके आगे खण्डन किया हे--तिन्नोपपद्चते! | से पिश्वभरके विद्यनोफों आमस्त्रग देवा हू इस प्िचारर डिये कि यह उद्धुत पाठ फिस अन्थया है उताया जाय। श्रोभाष्व में यह पाठ है नहीं! झा, रमाष्य में भी यह पाठनहीं है। अन्य किसी भी सम्पदायाचार्यर भाष्य म यह पाठ नहा है।




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