पिलाणी राजस्थानी ग्रन्थमाला | Pilani Rajasthani Granthmala

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Pilani Rajasthani Granthmala  by ठाकुर रामसिंह -Thakur Ramsingh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २५ ) जिस प्रकार संस्कृत-साहित्यगें सुभापित-संग्रह तेयार होते रहे चैसे ही 'हिन्दीमें भी कुछ पद्य-संप्रह समय-समयपर बने भोर प्रकाशित हुओ ', किल्तु उनमें राजस्थानी-साहित्यका स्थान नहींके बरावर है। मोतीछाछ सोढंखी द्वारा संकल्ति 'आनंद-संग्रद-बोध” तथा मेरे मित्र महुसीसर-ठाकुर स्वर्गीय . श्रीभूरसिहजी शेखावतके “विविध-संप्रह? में राजस्थानी भाषाके कुछ सुन्द्र पद् मैंने पढ़े हैं, किन्तु राजस्थानीकी इृष्टिसे इन्हें सर्वागमुन्दर नहीं फह ' सकते । राजस्थानी भाषाका साहित्य भी हिन्दी-साहित्यका मेक महत्त्वपूर्ण , अंग है। सैंकड़ों वर्षासे राजपूतानेके भिन्न-भिन्न हिन्दू राजाओंके आश्रयमें रहेहुअ अनेक चारणों,भाटों,तथा कवियोंके द्वारा राजस्थानी भाषाका कान्य- साहित्य तैयार होता रह्य है। राजस्थानीकी कविता भी वैंसी ही मर्भस्पर्शिनी, ओजस्विनी अंब॑ प्रभावोत्पादिनी दे, जैंधी प्राचीन संस्कृत ओर हिन्दी कविता। जो वस्तुतः काव्य-मर्मज्ञ दें, वे अंक वार राजस्थानीके चुभते हुआ पद्योंको पढ़ या सुनकर उनकी हृदयसे सराहना किये विना नहीं रह सकते। जिस राजस्थानी भाषाका काव्य-साहित्य इतना व्यापक ओय॑ प्रभावोत्पादक है, उसके विभिन्न विपयोंके चुने हुआ भावपूर्ण पद्मोंक्रे सुन्दर संगहकी सामा- न्‍्यतः हिन्दी-प्रेमियों,ओर विशेषतः राजस्थानियों, फे ढिओे चिरकालसे भाव- श्कृता थी । राजस्थानीके पद्मोक्ा कोई उत्कृष्ट संपह अब तक प्रकाशित नहीं १ उद्याहरणार्थ--कालिदास-हजारा, प्रताप-हलारा, हफीशुछाखाँका - हजारा, पड़ऋतु हजारा, रसमोदक-हजारा, नधीनस ग्रह, शिवसिद्द सरोज, भारतेंदु- कृत छंदरी-तिलक, रागसागरोद्भव, रागकस्पद्वुम, रागरत्नाकर, मुँ० देवोप्रसाद छत राजनसनामत्त, सहिलामदुबाणी, कविरत्नमाला, वियोगी-हरि कृत अ्ज- माधुरोसार, श्यामए द्रदास छत सतसई-सप्तक, लोचनग्रसाद पॉटेय कृत कविता- कुछमसाला; रामनेरेश्न त्रिपाठो कृत फविताकोमुददी तथा घाघ-भौर-भट्टरी, लाता भगवानदीन कृत सूफ्तिसरोबर, वियोगी-हरि कृत सजन-संग्रह, संसदवानी संग्रह, . -साहित प्रभाकर, नवीन-पद्य-स' ग्रह, कालिदास कपूर छृत ' आधुनिक पयावली, ' मरोक्षमद्रास स्वामी छत द्विदी-पद्च-पारिणात, इत्यादि-दवत्यादि। हु ९ ; ः * ला ज-+म.स्वा«




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