आचार्य हेमचन्द्र और उनका शब्दानुशासन एक अध्ययन | Acharya Hemachandra Aur Unaka Shabdanushasan Ek Adhyayan

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Acharya Hemachandra Aur Unaka Shabdanushasan Ek Adhyayan by नेमिचन्द्र शास्त्री - Nemichandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ११ ] के नाम गिनाये हैं । कहा जाता है कि साह्वराज्य पंजाब के मध्यभाग और उत्तर पूर्व मे बिखरे हुए थे। बहुत सभव है कि साल्‍व जनपद अछूवर से उत्तर बीकानेर तक व्याप्त रहा होगा । हेम ने “बहुविपयेभ्य:? ६1३।४५ सूत्र में विभिन्न जनपदों में पेदा हुये व्यक्तियों के नामों का उल्लेख करते हुये दावं, कास्बव, जिहु, अजसीढ, अजुकुन्द, कालञ्र और चेकुलि जनपदों का नामोल्लेख किया है। चिनाव भर रावी के वीच का भाग दावे ( जम्मू ) जनपद कहलाता था। ६1३।७५० सूत्र में भर्कच्छु और पिप्पलीकच्छु का, ६।३।३८ में ब्जि और भद्गक का, ७1१।३१९ मे निपध, निचक्, निट, कुरु, अवन्ति, कुन्ति, वसति और चेदि का एवं ६1१।१२० में कम्बोज, चोल और केररू जनपदों का उल्लेख किया है। सौराष्ट्रका नामाक्षन ७५1२।८ सें उपलब्ध होता है। इन जनपढों में हेम के समय में चेदि, जवन्ति--मालव और सौराष्ट्र का विशेष महत्व था। चेदि जनपद के नामान्तर त्रेपुर, डाहल और चेच्य है। यह जनपद भप्निकोण में शुक्तिमती नदी के किनारे विन्ध्य एछठ पर अवस्थित था। वर्तमान वधेल- खण्ड भौर तेवार चेदि राज्य के अन्तर्गत थे। मालव--यह जनपद उजयिनी से लेकर माहिप्मती तक व्याप्त था और दक्षिण में यह नर्मदा नदी की घाटी तक फैला हुआ था। द्वितीय शतावदी तक यह अवन्ति जनपद कहलाता था | आठवी शताब्दी ईस्वी से हम इसे मालच के नाम से पाते हैं। हेमचन्द्र ने अरुणत्‌ सिद्धराजोडवन्तीन! (५1२८ ) उदाहरण प्रस्तुत किया है। इस उदाहरण से इस ऐतिहासिक तथ्य पर प्रकाश पढ़ता है कि राजा जयसिंह ने १२ वर्षों तक मालवा के परिमारों के साथ युद्ध करके विजय प्राप्त की ओर वह अवन्तिनाथ कद्दछाया था। उसने बर्बरों का दुमन किया और महोबे के चन्दे्ों को सन्धि करने के लिए विवश किया । उसकी नीति प्रधानतया भाक्रमणात्मक थी, यह भी इस उदाहरण से स्पष्ट अवगत होता है । काठियावाड़ से युक्त पश्चिमी समुद्र तथवर्ती सम्पूर्ण देश का नाम सोराष्ट्र है, जिसके उत्तरी भाग की सीमा सिन्धु प्रान्त को, पूर्वी सीमा सेवाड- राजस्थान और मालवा को तथा दक्षिणी महाराष्ट्र एव कॉकण का रपशे करती थी ! 'अजयत्सिद्ध: सोराष्ट्रब! (७५१२।८ ) उदाहरण से स्पष्ट हे कि सेन्धव, भड़ौच के गुजर को जीतकर जयसिंह सम्नाट्‌ बना था। इस उदाहरण में सोरठ के दुर्दूर राजा खेंगार को पराजित करने का संकेत किया है। इस राज्य की विजय के अनन्तर ही सिद्धराज को चक्रवर्ती पद प्राप्त हुआ था। इसमें सन्देह नहीं कि चालुक्यः चक्रवर्ती जयसिंह का शासनकाऊ सौराष्ट्र के




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