वेदभारती | Vedabharati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्राह्मण ] [ १३ इन को रचना चाहे जब और चाहे जिस आधार पर की गई हो, इन की मूल सामग्री का सीवा सहितावाल से सम्बध्घ है । ब्राह्मणों की सस्या ओर नाम 3 प्रत्येक वेद के अपने अपने एक वा अ्रधिक बाह्मण हे । ऋग्वेद के ऐनरेय कौपीतकि और शाखायन ब्राह्मण यजुर्वेद के - शन्पथ और तेतिरोय ब्राह्मण, सामवेद के ताण्ड्य महात्राह्मण (>्पर्चावश ब्राह्मण ), मत, आर्पेय, सामवियान, सहितोपनिपद्‌ देवन, पड्पिश, वश जेमिनीय और जमिनीयोपपिद बुाह्मण तथा प्रथर्ववेद का गोपथ ब्राह्मण मिलते हैं । इन म तेत्तिरीय और ज॑मि- गीय इन नाभो की शाखा्रो के ब्राह्मण है। जेमिनीयोपनिपद्‌ जेमि गीय ब्राह्मण का ही ग्रग हे । इसी प्रकार मत्र ब्राह्मण झ्रादि भी केसी समय पचविश ब्राह्मण के श्रग रहे हो सकते हैं । ब्राह्मणों के प्िपय ४ ब्राह्मणों मे अपनी अपनी सहिताश्रों श्ौर श्वाखाओं 1 सम्बबत क्रिप्राक्लाप का सक्‍लन उन की प्रामाशिक्ता का ववचन और उन के मूल भाव या प्रतीक श्रादि का कथन मिलते '। इन म वशित क़ियाए बटी जटिल है और विशेषज्ञ के गिना धर्मागवित नहीं की जा सकती + कुछ का तो सभार भी सामाय्य ुप्य जुटाने मअसम्थं रहगा | कुछ निनान्त अबव्यवहार्य र प्रतीक्रमात्र हो मालूम पटने ह। शेप मे भी कुछ क्रियाएं तप्रयाज्य प्रवीत हांती है । प्रताक की हष्टि सेये सब शिष्ट और गद्य हो जाते है । ब्राह्मणों के आरयान ४ ब्राह्मजा म न्वन-स्यल पर बहत से सरव, सक्षिप्त प्रौर रोचक आरयान भी मिलते हैं। इन से ही आगे चल कर




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